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________________ प्रयुनि बार में : मानदष्ट भीतर में २४१ १.माय मंबर-काधिक चंचलता का निरोध । २. पचन संघर-~-मीन। ३. मन नंबर-~ध्यान। काया को पीटा देना भगवान् को इप्ट नहीं था। किन्तु नंबर की महता पाने क प्रयत्न में पाया को नष्ट हो तो उमगे यवना भी उन्हें इप्ट नहीं था। गड़े रहने में बैठना और वंटने मनोना नुनद है, पर मई-गडे ध्यान करने में जो भक्ति का पर्नुल बनता, वह बैठे-बैठे और लेटे-लेटे ध्यान करने से नही दाता। ____ वाया और वचन का संचालन मन करता है, इसलिए भगवान् बुद्ध मन को ही बंधन और मुक्ति का मारय मानते थे। मतिमनिकाय का एक प्रगंग है 'उमममय निपनातपुत्त निग्रंन्यों की बड़ी परिषद के साथ नालन्दा में विहार करते थे। तब दीपं तपस्वी निन्य ने नालन्दा में भिक्षावार पर भोजन गिया । उसके पश्चात् यह प्रापारिक नासपन में, जहां भगवान् थे, यहां गया। भगवान् न गुमान प्रश्न पूछकर एक ओर गया हो गया। भगवान् ने कहा'तपरयो ! आगन मोजल है, यदि इच्छा हो तो बैठ जाओ।' दीपं तपस्वी एक आमनले एक ओर बैठ गया । भगवान् बोले-'तपस्थी ! पाप-गामं घो प्रपत्ति पः लिए निग्गंध नातमुत्त किसने कर्मों का विधान करते हैं ?' । मायुप्मान् ! गौतम! एमं पा विधान करना निगंदनातपन कागति नहीं । आगमान् ! गौतम ! दर का विधान भग्ना नातपुल पोगति।' 'तपस्वी ! नो पिर पाप-कगं मी प्रवृत्ति के लिए नातपुत बिलने दंष्टों का विधान करते? 'आनुमान् ! गौतम ! पाप-कामं की प्रवृति के लिए निगं नातपुत्त लीन टों का विधान कारसे, जैग-मापद, पसनद और मनदपः। जपानी : तो बया मापा दना दनदष्ट दूना है और मनदाट भानुमान् ! गोरम ! पापा मगही दगा? दुगना ही और मना दूसरा चीनीनो दो में मिल मालत पार- मशी प्रति लिए कि दोनोमन प्रतिदिन एग्ले- शो, पदनदार की ___ ! ! नीलो दही मिल की प्रालि HERE योगासन दिल हमले का दबावगीकार म ____ ' : प्रतिदिन दोस वि.
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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