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________________ बौद्ध साहित्य में महावीर २३६ भगवान इस दुर्भिक्ष में इतने बड़े संघ के माप चारिका क्यों कर रहे हैं ? क्यों मुगलों के नाम और अहित के लिए भगवान् तुले हैं ?' ___ 'ग्रामणी ! इस प्रकार दोतरफा प्रश्न पूछे जाने पर घमण गौतम न जगल मकेगा और न निगल मकेगा।' ते ! बहुत अच्छा' कहकर मसिबन्धकपुन ग्रामपी यहां से चलकर भगवान् खुद को पाम आया । नमस्कार कर एक ओर बैठ गया। कुछ क्षणों बाद बोलाभने ! भगवान् अनेक प्रकार के गुलों के उदय, रक्षा और अनुकम्पा का वर्णन करते 'हां, ग्रामणी ! करते है।' भंते ! तो भगवान् दम दुभिक्ष मानने बड़े संघ से गाय चारिका वयों करते हैं ? पयों गुलों के नाम और अहित के लिए भगवान् तुले है ?" भगवान् महावीर लोक को गान और अलोक को अनन्त प्रतिपादित करते। थे। पिटया साहित्य में इस बात की पुष्टि होती है। दो लोकायतिर ग्राह्मण भगवान् के पाम बाए और अभिवादन कर पूछा'भत ! पूरणकश्यप नवंश, मर्यदर्शी, निगिल भान-पान का अधिकारी ? यह मानता है कि मुझे चलते, गहें रहते. मोते, जागते भी निरंतर जान-दान उपस्थित गता। यार मारता - अनन्त मान में बना लोग को जानना-पंगता हूं। मते ! निग्गंट नागपुत भी ऐसे ही कहता। दर भी कहता है, सपने मनन्त भान में अनन्त नोय मो देशला-जानता।म परमार-विरोधी मानवादों में हे गौतम ! गौन-मा मत्य बोर पान-सा बनत्य?" ६. arrr.. !
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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