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सर्वजन हिताय : सर्वजन सुखाय
"भंते ! अहिंसा किनकी रक्षा के लिए है ?' 'सब जीवों की रक्षा के लिए।'
"भंते ! थोड़े जीवों की हिंसा द्वारा बहुतों की रक्षा सम्भव है । पर सबकी रक्षा कसे सम्भव है ?'
'अहिंसा के घड़े में शत्रुता का एक भी छेद नहीं रह सकता । वह पूर्ण निश्छिद्र होकर ही समत्व के जल को धारण कर सकता है।'
"मंते ! अहिंसा का सन्देश किन तक पहुंचाएं ?' 'हर व्यक्ति तक पहुंचाओ, फिर वह-- जागृत हो या सुप्त, अस्तित्व के पास उपस्थित हो या अनुपस्थित, अस्तित्व की दिशा में गतिमान् हो या गतिशून्य, संग्रही हो या असंग्रही, वन्धन खोज रहा हो या विमोचन
-यह अहिंसा का सन्देश 'सर्वजीवहिताय' है, इसलिए इसे सब तक पहुंचाओ।" ___भगवान् महावीर अस्तित्व को देखते थे, इसलिए व्यक्तित्व उनके पथ में कोई सीमारेखा नहीं खींच पाता था। उस समय व्यक्तिवादी पुरोहित उच्चवर्ग के हितों का संरक्षण करते थे। उनका धर्म दो दिशाओं में चलता था । अभिजात वर्ग के लिए उनके धर्म की धारणा एक प्रकार की थी और निम्नवर्ग के लिए दूसरे प्रकार की। अभिजात वर्ग का धर्म है सेवा लेना और शूद्र का काम है सेवा देना और सब कुछ सहना । इस स्थिति को धर्म का संरक्षण प्राप्त हो गया था । भगवान् महावीर ने इसे सर्वथा अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा-'इस धारणा में अभिजात वर्ग के हितों के संरक्षण का भद्दा प्रयत्न है। यह धर्म नहीं है, नितान्त अधर्म है । इससे सर्वजीवहिताय की भावना विखंडित होती है। इस अधर्म की उत्पापना के लिए भगवान् ने भिक्षुओं से कहा-'भिक्षुलो ! तुम परिव्रजन करो तपा अभिजात और निम्न वर्ग को एक ही धर्म की शिक्षा दो। जो धर्म अभिजात वर्ग के लिए है, वही निम्न वर्ग के लिए है और जो निम्न वर्ग के लिए है, वही अभिजात वर्ग के लिए है । अभिजात और निम्न-दोनों के लिए मैंने एक ही धर्म का प्रतिपादन किया है।' _____ अस्तित्व के भेद अस्तित्व की सीमा में प्रविष्ट नहीं होने चाहिए। धर्म का क्षेत अस्तित्व का क्षेत्र है। वह व्यक्तित्व के भेदों से मुक्त रहकर ही पवित्र रह गपता है।
१. पारो, ,।