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श्रमण महावीर के भावी प्रयत्नों से ज्ञात होता है। मुक्ति का अन्तर्द्वन्द्व
कुछ लोग जागते हुए भी सोते हैं और कुछ लोग सोते हुए भी जागते हैं। जिनका अन्तःकरण सुप्त होता है, वे जागते हुए भी सोते हैं। जिनका अन्तःकरण जागृत होता है, वे सोते हुए भी जागते हैं।
कुमार वर्द्धमान सतत जागृति की कक्षा में पहुच चुके थे। गर्भकाल में ही उन्हें अतीन्द्रिय ज्ञान उपलब्ध था। उनका अन्तःकरण निसर्ग चेतना के आलोक से आलोकित था। भोग और ऐश्वर्य उनके पीछे-पीछे चल रहे थे, पर वे उनके पीछे नहीं चल रहे थे।
एक दिन कुमार वर्द्धमान आत्म-चिन्तन में लीन थे। उनका निर्मल चित्त अन्तर् की गहराई में निमग्न हो रहा था। वे स्थूल की परतों को पार कर सूक्ष्म लोक में चले गए। उन्हें पूर्वजन्म की स्मृति हो आयी।' उन्होंने देखा, जीवन की शृंखला कहीं विच्छिन्न नहीं है, अतीत के अनन्त में सर्वत्र उसके पदचिह्न अंकित
___अतीत की कुछ घटनाओं ने कुमार के मन पर बहुत असर डाला । कुछ समय के लिए वे चिन्तन की गहराई में खो गए।
दर्पण में प्रतिविम्ब की भांति अतीत उनकी आंखों के सामने उतर आया'मैं निपृष्ठ नाम का वासुदेव था। एक रात्रि को रंगशाला में नृत्य-वाद्य को आयोजन हुआ। मैं और मेरे सभासद् उसमें उपस्थित थे। मैंने अपने अंगरक्षक का कहा, 'मुझे नींद न आए तब तक यह आयोजन चलाना। जब मुझे नींद आने लगे तव इसे बन्द कर देना।' उस दिन मैं बहुत व्यस्त रहा। दिन भर के कार्यम से थका हुआ था। रात्रि की ठंडी वेला। मनोहर नृत्य, लुभाने वाला वाद्य-गीत । समय, नर्तक, गायक और वादक का ऐसा दुर्लभ योग मिला कि सबका मन प्रफुल्लित हो उठा । लोग उस कार्यक्रम में तन्मय हो गए। वे कालातीत स्थिति का अनुभव करने लगे। मुझे नींद का अनुकल वातावरण मिला। मैं थोड़े समय में ही निद्रालीन हो गया। आयोजन चलता रहा।
गहरी नींद के बाद मैं जागा। मेरे जागने के साथ मेरा अहं भी जागा। मैंने अंगरक्षक से पूछा, 'क्या मेरी आज्ञा का अतिक्रमण नहीं हुआ है ?' वह कुछ उत्तर न दे सका। वह नृत्य और वाद्य-गीत में इतना खोया हुआ था कि उसे मेरी नींद और मेरे जागने का कोई भान ही नहीं रहा । मैं आज्ञा के उल्लंघन से तिलमिला उठा। मेरा क्रोध मीमा पार कर गया। मैंने आरक्षीवर्ग के द्वारा उसके कानों में
१. मायपकनिक्ति, गापा ७१।