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________________ २०८ श्रमण महावीर जन-जन के मुंह से यह बात सुन गौतम के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उन्होंने उपासकों से पूछा-'बताओ, तुमने क्या प्रश्न किए और पापित्यीय श्रमणों ने क्या उत्तर दिए ?' 'हमने उनसे पूछा-भंते ! संयम का क्या फल है ? तप का क्या फल है ?' पापित्यीय श्रमणों ने उत्तर दिया-'संयम का फल नए बंधन का निरोध है। तप का फल पूर्व बंधन का विमोचन है।' . 'इस पर हमने पूछा-भंते ! संयम का फल नए बंधन का निरोध और तप का फल बंधन का विमोचन है तब फिर देवलोक में उत्पन्न होने का हेतु क्या है ?' इस प्रश्न के उत्तर में स्थविर कालियपुत्त ने कहा-'आर्यो ! जीव पूर्व तप से देवलोक में उत्पन्न होते हैं।' स्यविर मेहिल ने कहा-'आर्यो ! जीव पूर्व संयम से देवलोक में उत्पन्न होते स्थविर आनंदरक्षित ने कहा-'आर्यो ! शेष कर्मों से जीव देवलोक में उत्पन्न होते हैं।' स्थविर काश्यप ने कहा-'आर्यो ! आसक्ति क्षीण न होने के कारण जीव देवलोक में उत्पन्न होते हैं।' गौतम इन प्रश्नोत्तरों का विवरण प्राप्त कर भगवान् के पास पहुंचे। भगवान् के सामने सारी बात रखकर बोले-'भंते ! क्या पापित्यीय स्थविरों द्वारा प्रदत्त उत्तर सही है ? क्या वे सही उत्तर देने में समर्थ हैं ? क्या वे सम्यग्ज्ञानी हैं ? क्या वे अभ्यासी और विशिष्ट ज्ञानी हैं ?' भगवान ने कहा-'गौतम ! पाश्र्वापत्यीय स्थविरों द्वारा प्रदत्त उत्तर सही हैं । वे सही उत्तर देने में समर्थ हैं । मैं भी इन प्रश्नों का यही उत्तर देता हूं।' 'भंते ! ऐसे श्रमणों की उपासना से क्या लाभ होता है ?' 'सत्य सुनने को मिलता है।' 'भंते ! उससे क्या होता है ?' 'ज्ञान होता है।' 'भंते ! उससे क्या होता है ?' 'विज्ञान होता है-सूक्ष्म पर्यायों का विवेक होता है।' 'भंते ! उससे क्या होता है ?' 'प्रत्याख्यान होता है-अनात्मा से आत्मा का पृथक्करण होता है।' 'भंते ! उससे क्या होता है ?' 'संयम होता है।' 'भंते ! उमसे क्या होता है ?' 'अनाव होता है-अनात्मा और आत्मा का संपर्क-सेतु टूट जाता है।'
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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