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मुक्त मानस : मुक्त द्वार भेद नहीं हो सकता। वैदिक धर्म और श्रमण धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म-ये धर्म-संस्थान हैं, धर्म के तंत्र हैं, धर्म नहीं हैं। ये धर्म नहीं हैं, इसलिए अनेक हो सकते हैं, भिन्न और परस्पर विरोधी भी। ये सत्य को शब्द के माध्यम से पकड़ने का प्रयत्न करते हैं, जैसे एक शिशु तालाब में पड़ने वाले सूर्य के प्रतिविम्ब को पकड़ने का प्रयत्न करता है।
एक आदमी कमरे में बैठा है। द्वार बन्द है । एक छोटी-सी खिड़की खुली है। उस पर जाली लगी हुई है। यह सच है कि आदमी खिड़की से झांककर आकाश को देख सकता है। किन्तु यह भी उतना ही सच है कि वह सम्पूर्ण आकाश को नहीं देख सकता । आकाश उतना ही नहीं है जितना वह देख सकता है और यह भी सच है कि वह आकाश को सीधा नहीं देख सकता, जाली के व्यवधान से देख सकता है।
भगवान महावीर ने एक बार गौतम से कहा-'जब धर्म का द्रष्टा नहीं होता तव धर्म अनुमान की जाली से ढंकी हुई शब्द की खिड़की से झांककर देखा जाता है। उस स्थिति में उसके अनेक मार्ग और अनेक मार्ग-दर्शक हो जाते हैं। गौतम ! तुम्हें जो मार्ग मिला है, वह द्रष्टा बनने का मार्ग है। तुम जागरूक रहो और धर्म के द्रष्टा वनो।"
भगवान् महावीर धर्म के द्रष्टा थे। वे अचेतन में अचेतन धर्म को देखते थे और चेतन में चेतन धर्म को। वे यथार्थवादी थे । भय, प्रलोभन या अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतिपादन उन्हें प्रिय नहीं था।
आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है---'भगवन् ! आपने यथार्थ तत्त्व का प्रतिपादन किया, इसलिए आपके व्यक्तित्व में वह कौशल प्रकट नहीं हुआ, जो घोड़े के सींग उगाने वाले नव-पंडित के व्यक्तित्व में प्रकट हुआ है।' ___अनेकान्त दृष्टि और यथार्थवाद--ये दोनों साथ-साथ चलते हैं। जो अनेकान्त दृष्टि वाला नहीं होता, वह यथार्थवादी नहीं हो सकता और जो यथार्थवादी नहीं होता, वह अनेकान्त दृष्टि वाला नहीं हो सकता। भगवान् महावीर में अनेकान्त दृष्टि और यथार्थवाद-दोनों पूर्ण विकसित थे। इसलिए वे सत्य को संघीय क्षितिज के पार भी देखते थे।
१. एक बार भगवान् कौशाम्बी से विहार कर राजगृह आए और गुणशीलक चंत्य में ठहरे। गौतम स्वामी भिक्षा के लिए नगर में गए। उन्होंने जन-प्रवाद सुना-तुंगिका नगरी के बाहरी भाग में पुष्पवती नाम का चैत्य है । वहां भगवान् पाव के शिष्य आए हुए हैं। कुछ उपासक उनके पास गए और कुछ प्रश्न पूछे।
१. उत्तरज्झयणाणि १०॥३१:
न हु जिणे अज्ज दिस्सई, वहुमए दिस्सई मग्गदेसिए। संपर नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए ।