________________
१९०
श्रमण महावीर
होता है-इस प्रश्न में उनका मन अब भी उलझ रहा था। उन्होंने अपनी उलझन भगवान के सामने रखी। भगवान् ने उसका समाधान दिया। वह समाधान महान् आत्मा द्वारा दिया हुआ आत्मा के उदय का महान् संदेश है। उसका छोटा-सा चित्र इन रेखाओं में आलेखित होता है
अचेतन जगत् को नियम की शृंखला में बांधा जा सकता है, एक सांचे में ढाला जा सकता है। चेतन जगत् नियमन करने वाला है। उसमें चेतना की स्वतंत्रता है। उसके चैतन्य-विकास के अनन्त स्तर हैं। उसके स्वतन्त्र व्यक्तित्व की असंख्य धाराएं हैं। फिर अचेतन की भांति उसे कैसे किया जा सकता है नियमबद्ध और कैसे दिया जा सकता है उसे ढलने के लिए एक सांचा ? जहां आन्तरिक परिवर्तन की स्वतंत्रता है, पूर्ण स्वतन्त्रता है, दिशा और गति की स्वतंत्रता है, किसी का हस्तक्षेप नहीं है, वहां मार्ग छोटा और लम्बा होगा ही। यदि ऐसा न हो तो स्वतन्त्रता का अर्थ ही क्या ? सबके लिए एक ही गति से चलना अनिवार्य हो तो फिर स्वतन्त्रता और परतंत्रता के बीच भेदरेखा कहां खींची जाए ?
भगवान् ने रहस्य को अनावृत करते हुए कहा-'गौतम ! इन नव-दीक्षित श्रमणों का साधना-पथ छोटा नहीं है। ये द्रुतगति से चले। इन्होंने स्नेह-सूत्र को तत्परता से छिन्न कर डाला । इसलिए ये अपने लक्ष्य पर जल्दी पहुंच गए। _ 'तुम अभी स्नेह-सूत्र को छिन्न नहीं कर पाए हो । तुम्हारी आसक्ति का धागा मेरे शरीर में उलझ रहा है। तुम जानते हो कि स्नेह का बंधन कितना सूक्ष्म और कितना जटिल होता है । काठ को भेद देने वाला मधुकर कमल-कोश में बन्दी बन जाता है। तुम इस बंधन को देखो और देखते रहो। एक क्षण आएगा कि तुम देखोगे अपने में प्रकाश ही प्रकाश । सब कुछ आलोकित हो उठेगा। कितना अद्भुत होगा वह क्षण !'
भगवान की निर्मल वाणी का सिंचन पा गौतम का मन प्रफुल्ल हो उठा। उनके तपःपूत मुख पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। आंखों में ज्योति भर गई । वे सर्वात्मना स्वस्थ हो गए। उन्हें स्वप्न के बाद फिर जागृति का अनुभव होने लगा। उन्होंने सोचा-भगवान् ने जो कहा-'गौतम ! पलभर भी प्रमाद मत करो'इसका रहस्य क्या है ? इसका दर्शन क्या है ? क्या पलभर का प्रमाद इतना भयानक होता है, जिसके लिए भगवान् को मुझे चेतावनी देनी पड़े ? क्या पलभर का प्रमाद सारे अप्रमाद को लील जाता है ? मुझे इस जिज्ञासा का समाधान पाना ही होगा।
गौतम ने अपनी जिज्ञासा भगवान् के सामने रख दी । भगवान् ने पूछा'तुमने दीप को देखा है ?'
'भंते ! देखा है।' 'दीप जलता है, तव क्या होता है ?'