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श्रमण महावीर
अध्ययन
कुमार वर्द्धमान प्रारम्भ से ही प्रतिभा सम्पन्न थे । उनका प्रातिभ ज्ञान बौद्धिक ज्ञान से बहुत ऊंचा था। उन्हें अतीन्द्रियज्ञान की शक्ति प्राप्त थी । वे दूसरों के सामने उसका प्रदर्शन नहीं करते थे । वे आठ वर्ष की अवस्था को पार कर नवें वर्ष में पहुंचे। माता-पिता ने उचित समय देखकर उन्हें विद्यालय में भेजा । अध्यापक उन्हें पढ़ाने लगा । वे विनयपूर्वक उसे सुनते रहे ।
उस समय एक ब्राह्मण आया । विराट् व्यक्तित्व और गौरवपूर्ण आकृति । अध्यापक ने उसे ससम्मान आसन पर बिठाया । उसने कुमार वर्द्धमान से कुछ प्रश्न पूछे - अक्षरों के पर्याय कितने हैं ? उनके भंग (विकल्प) कितने हैं ? उपोद्घात क्या है ? आक्षेप और परिहार क्या हैं ? कुमार ने इन प्रश्नों के उत्तर दिए । प्रश्नों की लम्बी तालिका प्राप्त है, पर उत्तर अप्राप्त। इस विश्व में यही होता है, समस्याएं रह जाती हैं, समाधान खो जाते हैं ।
कुमार के उत्तर सुन अध्यापक के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। बहुत पूछने पर यह रहस्य अनावृत हो गया कि वर्द्धमान को जो पढ़ाया जा रहा है वह उन्हें पहले से ही ज्ञात है । अध्यापक के अनुरोध पर वे पहले दिन ही विद्यालय से मुक्त हो गए । '
हम वर्तमान को अतीत के आलोक में नहीं पढ़ते तब केवल व्यक्तित्व की व्याख्या करते हैं, उसकी पृष्ठभूमि में विद्यमान अस्तित्व को भुला देते हैं ।
हम वर्तमान को भविष्य के आलोक में नहीं पढ़ते तब केवल उत्पत्ति की व्याख्या करते हैं, उसकी निष्पत्ति को भुला देते हैं ।
वर्तमान में अतीत के बीज को अंकुरित करने और भविष्य के बीज को बोने की क्षमता है । जो व्यक्ति इन दोनों क्षमताओं को एक साथ देखता है वह व्यक्तित्व और अस्तित्व को तोड़कर नहीं देखता, उत्पत्ति और निप्पत्ति को विभक्त कर नहीं देखता, वह समग्र को समग्र की दृष्टि से देखता है । समग्रता की दृष्टि से देखने वाला आठ वर्ष की आयु में घटित होने वाली घटना का वीज आठ वर्ष की अवधि में ही नहीं खोजता । उसकी खोज सुदूर अतीत तक पहुंच जाती है । कुमार वर्द्धमान के प्रातिभज्ञान को आनुवंशिकता और मस्तिष्क की क्षमता के आधार पर नहीं समझा जा सकता । उसे अनेक जन्मों की श्रृंखला में हो रही उत्क्रान्ति के सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है |
सन्मति
'भगवान् पारखं की परम्परा चल रही थी। उनके हजारों शिष्य बृहत्तर भारत
१. आवश्यक पूर्वभाग ०२४८ २४६