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श्रमण महावीर उपयोगिता है ?
'आजीवक प्रवर ! मैं फिर आपसे कहना चाहता हूं कि भगवान् के आचरण प्रयोजन के अनुरूप होते हैं। उनमें कोई विसंगति नहीं है।'
गोशालक ने आर्द्रकुमार के समाधान पर आवरण डालते हुए कहा'आर्द्रकुमार ! क्या तुम नहीं मानोगे कि महावीर बहुत भीरु हैं ?'
'यह मानने का मेरे सामने कोई हेतु नहीं है।' 'नहीं मानने का क्या हेतु है ?' 'मैं पूछ सकता हूं, मानने का क्या हेतु है ?'
'जिन अतिथि-गृहों और आराम-गृहों में बड़े-बड़े विद्वान् परिव्राजक ठहरते हैं, वहां महावीर नहीं ठहरते । विद्वान् परिव्राजक कोई प्रश्न न पूछ लें, इस डर से वे सार्वजनिक आवास-गृहों से दूर रहते हैं । क्या उन्हें भीरु मानने के लिए यह हेतु पर्याप्त नहीं है ?'
'भगवान् अर्थशून्य और वचकाना प्रवृत्ति नहीं करते। वे प्रयोजन की निष्पत्ति देखते हैं, वहां ठहरते हैं, अन्यत्र नहीं ठहरते। प्रयोजन की निष्पत्ति देखते हैं, तब प्रश्न का उत्तर देते हैं, अन्यथा नहीं देते । इसका हेतु भय नही, प्रवृत्ति की सार्थकता
___आजीवक आचार्य महावीर को निरपेक्षदृष्टि से देख रहे थे। फलतः उनकी दष्टि में महावीर का चित्र विरोधाभास की रेखाओं से बना हआ था । आर्द्रकुमार महावीर को महावीर की दृष्टि (सापेक्षदृष्टि) से देख रहा था। फलतः उसकी दृष्टि में प्रतिविम्बित हो रहा था महावीर का वह चित्र जो निर्मित हो रहा था सामंजस्य की रेखाओं से।
देश, काल और परिस्थिति के वातायन की खिड़की को बन्द कर देखनेवाला जीवन में विरोधाभास देखता है । यथार्थ वही देख पाता हैं, जिसके सामने सापेक्षता की खिड़की खुली होती है।
१. देखें-यगटो, २॥६॥