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________________ विरोधाभास का वातायन १७१ 'मेरा विचार तुम इस बात से समय लो कि अब में उनके नाम नहीं हूँ ।' 'साथ नहीं रहने के अनेक कारण हो सकते है । में जानना चाहता है कि नापने किस कारण से उनका साथ छोड़ा ?" 'महावीर अस्थिर विचार वाले हैं। वे कभी कुछ कहते है और कभी कुछ । एक बिन्दु पर स्थिर नहीं रहते पहले वे अकेले रहते थे, अब परिषद् से घिरे हुए रहते हैं । ० पहले वे मौन रहते थे, अब उपदेश देने की धून में लगे हुए हैं। ० पहले वे शिष्य नहीं बनाते थे, अब शिष्यों की भरमार है । ० पहले वे तपस्या करते थे, जब प्रतिदिन भोजन करते है । o o पहले वे रूखा-सूखा भोजन करते थे, जब सरस भोजन करते हैं । तुम्हारे महावीर का जीवन विरोधाभासों से भरा पड़ा है। इसीलिए मैंन उनका साथ छोड़ दिया ।' गोशालक ने फिर अपने वक्तव्य की पुष्टि करने का प्रयत्न किया। वे बोले'आर्द्रकुमार ! तुम्ही बताओ, उनके अतीत और वर्तमान के आचरण में संगति कहां है ?संधान कहाँ है ? उनका अतीत का आचरण यदि मत्य था तो वर्तमान का आवरण असत्य है और यदि वर्तमान का आवरण नत्य है तो अतीत का नाचरण असत्य था। दोनों में से एक अवश्य ही त्रुटिपूर्ण है। दोनों नहीं नहीं हो सकते।' 'मेरी दृष्टि में दोनों सही है ।' 'यह कैसे ?' 'मैं सही कह रहा हूं, आजीवक प्रवर ! भगवान् पहले भी अकेले में आज भी अकेले है और अनागत में भी अकेले होंगे। भगवान् जब भीतर की यात्रा कर रहे पे, तब बाहर में अकेले थे । उनकी वह यात्रा पूर्ण हो चुकी है। अब ये बाहर की यात्रा कर रहे हैं इसलिए भीतर में अकेले हैं । आचार्य ! आप जानते ही पानी मनुष्य एकान्त में जाता है और भरा मनुष्य भीए में वादने आता वे दोनों भिन्न परिस्थितियों के भिन्न परिणाम है। इनमें कोई विसंगति नहीं है। 'भगवान् सत्य के साक्षात्कार की साधना कर रहे थे, उनकी वाणी गोन थी। उन्हें सत्य का साक्षात् हो चुका है। अब सत्य उनकी वाणी में जा है। "भगवान् साधना-कान में अपूर्णता ने पूर्णता की ओर समय कोई उनका शिष्य कैसे पता है नया में भूका अनुगमन करता है, अनुचित है? "भगवान् संस्कारों का प्रधान करता संभव उनके संस्कार धू "के दिए नहीं है। ही ए है। थे।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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