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श्रेमण महावीर
क्या हो रहा है ?'
सम्राट् ने कुछ ही क्षणों में उस मनुष्य को देखा और वे स्तब्ध रह गए । उनका सिर लज्जा से झुक गया । उन्हें अपने शासन की विफलता पर महान् वेदना का अनुभव हुआ । महारानी का आक्रोश उनकी आंखों के सामने घूमने लगा। सम्राट ने राजपुरुष को भेजकर उस आदमी को बुला लिया। वह सम्राट् को प्रणाम कर खड़ा हो गया । सम्राट ने पूछा-'भद्र ! तुम कौन हो ?'
'मेरा नाम मम्मण है।' 'तुम कहां रहते हो?' 'मैं यहीं राजगृह में रहता हूं।'
'भद्र ! इस तूफानी रात्रि में कोपीन पहने तुम नदी के तट पर खड़े थे । क्या तुम्हें रोटी सुलभ नहीं है ?'
'रोटी बहुत सुलभ है, महाराज।' 'फिर यह असामयिक प्रयत्न क्यों?'
'मुझे एक बैल की जरूरत है, इसलिए मैं नदी में प्रवाहित काष्ठ-खण्डों को संजो रहा था।' ___"एक बैल के लिए इतना कष्ट क्यों ? तुम मेरी गोशाला में जाओ और तुम्हें जो अच्छा लगे, वह बैल ले लो।'
'महाराज ! मेरे बैल की जोड़ी का बैल आपकी गोशाला में नहीं है, फिर मैं वहां जाकर क्या करूंगा ?' _ 'तुम्हारा बैल क्या किसी स्वर्ग से आया है ?'
'कल प्रातःकाल आप मेरे घर चलने की कृपा करें, फिर जो आपका निर्देश होगा, वही करूंगा।'
सूर्योदय होते ही सम्राट् मम्मण के घर जाने को तैयार हो गए। मम्मण राजप्रासाद में आया और सम्राट को अपने घर ले गया। उसका घर देख सम्राट आश्चर्य में डूब गये । वह सम्राट को बैल-कक्ष में ले गया। वहां पहुंच सम्राट् ने देखा-एक स्वर्णमय रत्नजटित बैल पूर्ण आकार में खड़ा है, और दूसरा अभी अधूरा है। 'इसे पूर्ण करना है, महाराज !' मम्मण ने अंगुली-निर्देश करते हुए कहा । सम्राट् दो क्षण मौन रहकर बोले-'तुम सच कह रहे थे, मम्मण ! तुम्हारी जोड़ी का बैल मेरी गोशाला में नहीं है और तुम्हारे बैल की पूर्ति करने की मेरे राज्यकोष की क्षमता भी नहीं है। मेरी शुभ कामना है--तुम अपने लक्ष्य में सफल होओ। मैं तुम्हारी धुन पर आश्चर्य-चकित हूं।"
सम्राट् ने राजप्रासाद में आ उस धनी-गरीब की सारी रामकहानी महारानी
१. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ० ३७१, ३७२ ।