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फ्रान्ति का सिंहनाद
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टुकारा दिया। कोणिक ने तीसरी बार दूत भेजकर युद्ध की चुनौती दी। चेटक ने उसे स्वीकार कर लिया।
चेटक ने मल्ल और लिच्छवि-मठारह गणराजों को नामंत्रित कर सारी स्थिति बताई। उन्होंने भी चेटक के निर्णय का समर्थन किया। उन्होंने कहा'शरणागत वेहल्लकुमार को कोणिक के हाथों में नहीं सौंपा जा सकता। हम युद्ध नहीं चाहते । किन्तु कोणिक ने यदि हम पर आक्रमण किया तो हम अपनी पूरी शवित से गणतंत्र की रक्षा करेंगे।'
कोणिक की सेना वैशाली गणतंत्र की सीमा पर पहुंच गई। घमासान युद्ध चाल हो गया। चेटक ने दस दिनों में कोणिक के दस भाई मार डाले । कोणिक भयभीत हो उठा।
इस घटना ने निम्न तथ्य स्पष्ट कर दिए
१. अहिंसा कायरता के आवरण में पलने वाला क्लव्य नहीं है। वह प्राणविरार्जन की तैयारी में सतत जागरूक पोल्प है।
२. भगवान् महावीर से अनाक्रमण का संकल्प लेने वाले अहिंसाव्रती आक्रमण की क्षमता से शून्य नहीं थे, किन्तु वे अपनी शक्ति का मानवीय हितों के विरुद्ध प्रयोग नहीं करते थे।
३. मानवीय हितों के विरुद्ध अभियान करने वाले जव युद्ध की अनिवार्यता ला देते हैं तब वे अपने दायित्व का पालन करने में पीछे नहीं रहते।
यह आश्चर्य की बात है कि इस महायुद्ध में भगवान महावीर ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। दोनों भगवान् के उपासक और अनुगामी थे । वे भगवान् की वाणी पर श्रद्धा करते थे। पर प्रश्न इतना उलझ गया था कि उन्होंने उसे बावेश पी भूमिका पर ही सुलझाना चाहा, भगवान् का सहयोग नहीं चाहा। और एक भयंकर पटना घटित हो गई।
ऐसी ही एक घटना कोगांवी के आस-पास घटित हो रही थी। महारानी मृगावती ने उसमें भगवान् का सहयोग चाहा । भगवान् वहां पहुंचे। समस्या मुला
उज्जयिनी का राजा चण्डप्रोत बहुत शक्तिशाली था। वह उन युग का अति कामुलाया। महारानी मृगावती का विल-पालका देख वह मुग्ध हो गया। उगने दूत भेजकर मतानीक से मृगावती की मांग दी । मतानीका ने माली मलंगा के ताप उमेटारा दिया ! नमसोत कुल होकर पत्त देनबी और चल पड़ा।
नोक पदरा गया। उसके हदय पर आघात लगा । उसे जतिसार को दीनारी होगई और यह इस संसार में चल बना।
१. निरवारिताको, १॥