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श्रमण महावीर
वरुण कुशल धनुर्धर था । उसका निशाना अचूक था । उसने धनुष को कानों तक खींचकर बाण चलाया । चम्पा का सैनिक एक ही प्रहार से मौत के मुंह में चला गया । '
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महाराज चेटक भी प्रहार न करने वाले पर प्रहार और एक दिन में एक बार से अधिक प्रहार नहीं करते थे । यह था प्रत्याक्रमण में अहिंसा का विवेक । यह थी हिंसा की अनिवार्यता और अहिंसा की स्मृति |
महाराज चेटक अहिंसा के व्रती थे । अनाक्रमण का सिद्धान्त उन्हें मान्य था । उनकी साम्राज्य विस्तार की भावना मानवीय कल्याण की धारा में समाप्त हो चुकी थी । फिर भी वे अपने सामाजिक दायित्व के प्रति सजग थे । एक बार महारानी पद्मावती ने कोणिक से कहा - 'राज्य का आनन्द तो वेहल्लकुमार लूट रहा है । आप तो नाम भर के राजा हैं ।' कोणिक ने इसका हेतु जानना चाहा । महारानी ने कहा- 'वेहल्लकुमार के पास सचेतक गंधहस्ती और अठारहसरा हार है । राज्य के दोनों उत्कृष्ट रत्न हमारे अधिकार में नहीं हैं, फिर राजा होने का क्या अर्थ ?'
महारानी का तर्कबाण अमोघ था। कोणिक का हृदय विध गया । उसने वेहल्लकुमार से हार और हाथी की मांग की । वेहल्लकुमार ने
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सम्राट् श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में हार और हाथी मुझे दिए थे, इसलिए ये मेरी निजी सम्पदा के अभिन्न अंग हैं । आप मुझे आधा राज्य दें तो मैं आपको हार और हाथी दे सकता हूं ।' कोणिक ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया ।
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कोणिक मेरे हार और हाथी पर बलात् अधिकार कर लेगा, इस आशंका से अभिभूत वेहल्लकुमार ने महाराज चेटक के पास चले जाने की गुप्त योजना बनाई । अवसर पाकर अपनी सारी सम्पदा के साथ वह वैशाली चला गया ।
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कोणिक को इस बात का पता चला। उसने महाराज चेटक के पास दूत भेजकर हार, हाथी और वेहल्लकुमार को लौटाने की मांग की । चेटक ने वह ठुकरा दी । उसने दूत के साथ कोणिक को सन्देश भेजा - ' तुम और वेहल्लकुमार दोनों श्रेणिक के पुत्र और चेल्लणा के आत्मज हो, मेरे धेवते हो । व्यक्तिगत रूप में तुम दोनों मेरे लिए समान हो । किन्तु वर्तमान परिस्थिति में वेहल्लकुमार मेरे शरणागत है । मैंने वैशाली - गणतंत्र के प्रमुख के नाते उसे शरण दी है, इसलिए मैं हार, हाथी और वेहल्लकुमार को नहीं लौटा सकता । यदि तुम उसे आधा राज्य दो तो मैं उन तीनों को तुम्हें सौंप सकता हूं ।'
कोणिक ने दूसरी बार फिर दूत भेजकर वही मांग की । चेटक ने फिर उसे
१. भगवई, ७।१६४- २०२ ।
२. आवश्यकचूणि, उत्तरभाग, पृ० १७३ : चेडएण एक्कस्स सरस्स आगारो कतो ।