SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रान्ति का सिंहनाद १४३ के सामने मूल्य कैसे पा सकता है ?" __ एक व्यक्ति ने भगवान् से पूछा-'भंते ! साधुत्व और वेश में क्या कोई सम्बन्ध है ?' भगवान् ने कहा-'कोई भी सम्वन्ध नहीं है, यह मैं कैसे कहूं? वेश व्यक्ति की आन्तरिक भावना का प्रतिविम्ब है। जिसके मन में निस्पृहता के साथ-साथ कष्ट-सहिष्णुता वढ़ती है, वह अचेल हो जाता है। यह अचेलता का वेश उसके अंतरंग का प्रतिविम्व है।' ___'भंते ! कुछ लोग निस्पृहता और कष्ट-सहिष्णुता के विना भी अनुकरण बुद्धि से अचेल हो जाते हैं । इसे मान्यता क्यों दी जाए ?' भगवान्-~~'इसे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। पर अनुकरण किसी मौलिक वस्तु का होता है । मूलतः वेश आंतरिक भावना की अभिव्यक्ति है। उसका अनुकरण भी होता है, इसलिए साधुत्व और वेश में सम्बन्ध है, यह भी मैं कैसे कहूं।' मैं चार प्रकार के पुरुषों का प्रतिपादन करता हूं। १. कुछ पुरुष वेश को नहीं छोड़ते, साधुत्व को छोड़ देते हैं। २. कुछ पुरुष साधुत्व को नहीं छोड़ते, वेश को छोड़ देते हैं ! ३. कुछ पुरुष साधुत्व और वेश-दोनों को नहीं छोड़ते। ४. कुछ पुरुष साधुत्व और वेश-दोनों को छोड़ देते हैं। गोष्ठी के दूसरे सदस्य ने पूछा-'भंते ! आज हमारे देश में बहुत लोग साधु के वेश में घूम रहे हैं। हमारे सामने बहुत बड़ी समस्या है, हम किसे साधु मानें और किसे असाधु ?' भगवान् ने कहा-'तुम्हारी बात सच है। आज बहुत सारे असाधु साधु का वेश पहने घूम रहे हैं । वे भोली-भाली जनता में साधु कहलाते हैं। किन्तु जानकार मनुष्य उन्हें साधु नहीं कहते।' 'भंते ! वे साधु किसे कहते हैं ?' भगवान् ने कहा 'ज्ञान और दर्शन से संपन्न, संयम और तप में रत । जो इन गुणों से समायुक्त है, १. उत्तरल्सयपाणि, २०१४२ : पोल्ते व मुट्ठी जह से सारे, न पिन्तए कूटरहायणे वा। राहामणी वेरलियप्पगासे, अमहरपए होइ ५ रामएस ॥ २. टानं ४।४१६ ।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy