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________________ संघ-व्यवस्था १०९ गांव में चाहे जितने समय तक रह सकते थे। भगवान् महावीर ने इसमें परिवर्तन फर नवकल्पी विहार की व्यवस्था की । उसके अनुसार मुनि वर्षावान में एक गांव में रह सकता है । शेप आठ महीनों में एक गांव में एक मास से अधिक नहीं रह सकता। पात्र भगवान् महावीर दीक्षित हुए तब उनके पास कोई पाव नहीं था। भगवान् ने पहला भोजन गृहस्थ के पात्र में किया। भगवान् ने नोचा-यह पात्र कोई मांजेगा, धोएगा । यह समारम्भ किसके लिए होगा? मेरे लिए दूसरे को यह क्यों करना पड़ ? उन्होंने पात्र में भोजन करना छोड़ दिया। फिर भगवान् पाणि-पाव हो गए-हाथ में ही भोजन करने लगे। भगवान् साधना-काल में तंतुवायशाना में ठहरे हुए थे। उस समय गोशानक ने कहा-भंते ! मैं आपके लिए भोजन लाऊं ?' भगवान् ने इन अनुरोध को अस्वीकार कर दिया । भगवान् गृहस्थ के पात्र में भोजन न करने का संकल्प पर गुये थे। इनीलिए भगवान् ने गोमालक की बात स्वीकार नहीं की। भगवान् भिक्षा के लिए स्वयं गृहस्थों के घर में जाते और वहीं दे रहकर भोजन कर लेते। गोध-स्थापना के बाद भगवान् ने मुनि पो एक पाद रखने की अनुमति दी । अब मुनिजन पात्रों में भिक्षा लाने लगे। भगवान के लिए भिक्षा लाने का अवकाश ही मही रहा । गणघर गोतम ने भगवान् के लिए भिक्षा लाने की व्यवस्था कर दी। मुनि लोहार्य इस कार्य में नियुक्त पे। भगवान् उनके द्वारा लाया हुला भोजन फरते थे। एक आचार्य ने उनकी स्तुति में लिया : 'धन्य है वह लोहार्य प्रमण, परम महिष्णु बनक-गौरवर्ण । जिसके पाद में लाया हुआ आहार भगवान् गाते थे, अपने हापों ने।" अभिवादन अभिवादन में विश्व में भगवान की दो दृष्टिमा प्राप्ती :-ATRE और मदरसामानमः । परलोष्टि के अनुसार सादर बंदनी । यति में ५ दिग. प. २०६; अपामा पति, ..! i. Pारा। ६. NAREER TEur Si Y. IT, ६५९५१ . ९.१.१ " rse :!
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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