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________________ ( 12 ) खाने को पशु भी खाता है और मनुष्य भी किन्तु पशुसिर्फ पेट पालने में ही लगा रहता है उसे औचित्यानौचित्य का विचार नही रहता भूसे के साथ में कोई कांटा कंकरं मिट्टी हो उसे भी खाजाता है तो मनुष्य उन्हें यत्नपूर्वक हटा कर अपने भोजन को माफ सुथरा करके खाया करता है । 'किन बछड़ों गायका दूध पीता है उससे श्राप भी फोरपाता है और गाय भी आराम से रहती है, वैसे ही सम्यग्दृष्टि की चेष्टा खुद के लिये और दूसरो के लिते भी लाभदायक हुवा करती है परन्तु मिथ्या दृष्टि जीव अपनी चेप्टा के द्वारा आप भी कष्ट भोगता है तो औरों को भी कष्टप्रद हुवा करता है, जैसे कि जोक पराया खून चूसती है सो उसे तो कष्ट पहुंचाती ही है किन्तु आप भी कष्ट उठाती है । देखो कि कौटम्बिक जीवन के भोगने वाले राम भी रहे और रावण भी था किन्तु दोनों के रहन सहन में कितना अन्तर था इसको विद्वान आदमी सहज में समझ सकता है। श्री रामचन्द्र अपने पिता का वचन व्यर्थ न हो पावे और मोसी केकई को कष्ट न पहुंचे सिर्फ इसी लिये अपने न्यायोचित राज्य को भी भाई भरत के लिये ढ़े चले और आप जङ्गलों में घूमते फिरे रास्ते में भी जो कुंछ राज्य सम्पत्ति पाई उसे चोरों के लिये अर्पण करते चले गये इसी मे उन्हें आनन्द प्राप्त था । जब सीता हरीगई तो उसका पता लगाना और शीघ्र से शीघ्र लाना एक आवश्यक बात थी फिर भी सुप्रीय जब मिला तो बोले कि मेरी सीता की तो कोई
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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