________________
( ३० )
स्वांग में उसे राजा और रङ्क के स्वांग में उसे रद्द मानता है बैसे ही यह दुनियांदारी का प्राणी उस शरीरधारी को उस शरीरमय ही मानता है, आत्मा अदृश्य होनेसे उस तक इसका विचार नही पहुचता । अथवा यो समझो कि नाटकस्थल मे उस नाटक का अधिपति किसी को राजा का स्वांग भरादेवे तो वहबड़ा खुश होवे कि देखो मैराजा बनगया और निर्वाचन समाप्त होने पर थोड़ी देर मे उसके उस स्वांग को वापिस उतारने लगे तो वह रोने लगे कि हाय मैं राजा बन गय था सो अब राजा से रंक बनाया जारहा हू तो यह उसकी भूल है वैसे ही यह संसारी जीव कर्मोदय से प्राप्त हुये अपने शरीर को ही अपना रूप मान रहा है अतः इसकी बुद्धि में इस शरीर के लिये अनुकूल साधन है उनको देखकर तो राजी होता है उन्हे बनाये रखना चाहता है एवं शरीर के प्रतिकूल पड़नेवाली बातों से द्वेष करके उनसे दूर भागता है । स्वादिष्ट पौष्टिक पदार्थ खाना चाहता है मिलजावे तो अपने को भाग्यशाली समझता है । रूखी सूकी जोकी रोटी मिली तो देख कर रोने लगता है । मखमल के गद्दे पर लेट लगा कर खुश होता है कंकरीली जमीनपर बैठ नेमे कष्ट अनुभव करता है । सुगन्धित तैल को बड़े चाव से शरीर पर मलता है मगर मिट्टी के तैल को छूने से ही डरता है । जिनसे शरीर श्रारामशील बने ऐसी बातों के सुनने मे तल्लीन रहकर उनके सुनाने शिखाने वाले को मित्र मान कर उसे देख कर ही प्रसन्न होता है, उपवास