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वाल-सूत्र
( २०१) मूर्ख मनुष्य विषयासक्त होते ही त्रस तथा स्थावर जीवो को सताना शुरू कर देता है, और अन्ततक मतलब-बेमतलब प्राणिसमूह की हिंसा करता ही रहता है।
(२०२) मूर्ख मनुष्य हिंसक, असत्यभाषी, मायावी, चुगलखोर और धूर्त होता है । वह मास तथा मद्य के खाने-पीने में ही अपना श्रेय समझता है।
(२०३ ) जो मनुष्य शरीर तथा वचन के बल पर मदान्ध है, धन तथा स्त्री जन में आसक्त है, वह राग और द्वेप दोनो के द्वारा वैसे ही कर्ममल का संचय करता है, जैसे अलसिया मिट्टी का ।
(२०४ ) पाप-कर्मों के फलस्वरूप जब मनुष्य अन्तिम समय में असाध्य रोगो से पीड़ित होता है, तब वह खिन्नचित्त होकर अन्दर-ही अन्दर पछताता है, और अपने पूर्वकृत पाप-कर्मों को याद कर-कर परलोक की विभीपिका से कांप उठता है।
( २०५ ) जो मूर्ख मनुष्य अपने तुच्छ जीवन के लिए निर्दय होकर पापकर्म करते है, वे महाभयकर प्रगाढ अन्धकाराच्छन्न एव तीव्र तापवाले तमिस्र नरक में जाकर पडते हैं।