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बाल-सुत्तं
( १९७ ) भोगामिसदोसविसन्ने, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे। बाले य मन्दिए मूढे, बज्झइ मच्छिया व खेलम्मि ॥१॥
( १९८) जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छई। न मे बिट्टे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई ॥२॥
( १९९) हत्यागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। को जाणइ परे लोए, अत्यि वा नत्यि वा पुणो ॥३॥
( २०० ) जणेण सद्धि होक्खामि, इइ बाले पगभइ । कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जइ ॥४॥