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महावीर-वाणी तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हलो जस्स न किंचणाई ॥४॥
( १५४ ) रसा पगामं न निसेषियन्वा,
पायं रसा दित्तिकरा नराणं । वित्तं च कामा समभिद्दवन्ति, दुर्म जहा साउफलं व पक्खी ॥५॥
( १५५ ) रूवेसु नो गिद्धिमुवेइ तिव्वं,
अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोयलोले समुवेइ मन्चं ॥६॥
( १५६ )
ख्वाणुरत्तस्स नरस्स एवं,
कुतो सुहं होज्ज फयाइ किंचि । तत्योवभोगे वि किलेस-दुक्खें,
निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं ॥७॥