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________________ अप्रमाद-सूत्र ( १३३ ) यह जीव त्रीन्द्रिय-काय में गया और वहाँ उत्कृष्ट सख्यात काल तक रहा। हे गौतम! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। ( १३४ ) यह जीव चतुरिन्द्रिय-काय में गया और वहाँ उत्कृष्ट सख्यात काल तक रहा। हे गौतम! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर । (१३५) यह जीव पचेन्द्रिय-काय में गया और वहां उत्कृष्ट सात तथा आठ जन्मतक निरन्तर रहा । हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। ( १३६ ) प्रमाद-बहुल जीव अपने शुभाशुभ कर्मों के कारण इस भांति अनन्त वार भव-चक्र में इधर से उधर घूमा करता है। हे गौतम! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर। ( १३७ ) ____ मनुष्य-जन्म पा लिया तो क्या ? आर्यत्व का मिलना वडा कठिन है। बहुत-से-जीव मनुष्यत्व पाकर भी दस्यु और म्लेच्छ जातियो में जन्म लेते है । हेगौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर।
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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