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धर्म-सूत्र
जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर चले जाते है, वे फिर कभी वापस नही आते; जो मनुष्य धर्म करता है, उसके वै रात और दिन सफल हो जाते है।
जवतक वुढापा नहीं सताता, जबतक व्याधियां नही बढती, जवतक इन्द्रियाँ हीन (अशक्त) नहीं होती, तबतक धर्म का पाचरण कर लेना चाहिए-बाद में कुछ नहीं होने का।
(१७) हे राजन् ! जब कभी इन मनोहर काम-भोगो को छोडकर आप परलोक के यात्री बनेंगे, तव एकमात्र धर्म ही आपकी रक्षा करेगा। है नरदेव । धर्म को छोडकर जगत् मे दूसरा कोई भी रक्षा करनेवाला नहीं।