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व्यवस्था में एक के बाद एक अनुक्रम से लोहे की पटरी पर ठीक निश्चित रूप में चलते रहते हैं मगर जब सामने से दूसरी गाड़ी आकर टकराती है तो उसका कोई डन्वा आगे वाला पीछे और पीछे वाला आगे हो लेता है एवं काई इवर उधर हो गिर पड़ता है यह सब व्युत्क्रम उस गाडी की टकरावण रूप निमित्त विशेष से ही होता है । एक प्रामके गाछ पर आम दश दिन में पकने वाले होते हैं उन्हीं को तोड़ कर पाल में दे दिये जायें तो वे तीन चार दिन में ही उस पाल की विशेष गरमी से पक कर तैयार हो जाते है ऐसा हमारे आगम मे भी बतलाया है । तथा जो आम पेड पर लगा हुआ है कच्चा है कुछ दिनों में पकने वाला है उस पर एक सर्प ने आकर विप उगल दिया तो वह आम चट पट अपने हरेपन को त्याग कर पीला एवं अपने कठोरपन को उलांघ कर पिलपिला बन जाता है मगर उसका स्वाद जैसा समय पर पकने से होने वाला था वैसा न हो कर कुछ और ही तरह का होता है इस प्रकार का यह व्युत्क्रम निमित्त विशेप से ही होता है।। शंका मान लिया कि द्वीपायन के निमित्त से द्वारिका नष्ट हुई
मगर सर्वज्ञ भगवान् श्री नेमिनाथ ने तो बतलादिया था कि अमुक समय पर नष्ट होगी उस समय ही वह नष्ट हुई क्यों कि उस द्वारिकारूप स्कन्ध के पुद्गल
परमाणुवोंमे तादृश परिणमन होनेवाला था सोही हुवा उत्तर- श्री नेमिनाथ स्वामी ने जैसे यह बतलाया था कि