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-तो पाप किसी से बिना पूछे-पछे, बिना किसी से पता लगाये फौरन यह समझ जाइए कि यह जोड़ा समाजभूषण सेठ भगवानदास और शोभालाल जी का ही है, जो धरती पर आज भी भ्रातृस्नेह को मूर्तिमान करता हुआ फिर रहा है । - समाजभूषण सेठ भगवानदास और शोभालाल सागर निवासी श्री पूरनचन्द जी समैया के पुत्र हैं। आपके एक बड़े भ्राता और थे जिनका नाम श्री मोहनलाल जी था। स्व. श्री मोहनलाल जी की कोई संतान नहीं है, किन्तु उनकी विधवा पत्नी आज भी विद्यमान हैं और अपने परिवार के साथ पूर्ण धार्मिकतामय जीवन बिता रही हैं। सेठ भगवानदास जी के पाँच पुत्र हैं-(१) डालचंद (२) प्रेमरन्द (३) शिखरचन्द (४) दीपचन्द और (५) अशोककुमार। तथा भी शोभालाल जी के को पुत्र हैं-(१) मानिकचन्द (२) हुकुमचन्द। दोनों भाइयों को दो-दो सुशील पुत्रियां तथा भनेको पौत्र और पौत्रियाँ भी हैं, और इस तरह आपका घर मव भांति सम्पन्न है।
भाज से ४० साल पहले इनकी स्थिति बहुत ही साधारण थी, किन्तु भाज जो उतारता और दानादिली ननमें है, चित्त की यहो वृत्ति भी उम समय थी, इसमें कमी नहीं थी, और अपने परिश्रम से कमाये हुए द्रव्य का वे अपने मित्रों के और सम्बन्धियों के बीच में उम समय भी वैसा ही उपयोग किया करते थे। समय पलटते देर नहीं लगत'; कुछ पुण्य का संयोग ऐसा मिला कि उस समय के बाद से ही, आपकी जो स्थिति पलटी तो पलटती ही गई और आज तो आपका निगला ही ठाठ है, लेकिन ठाठ के मायने यह नहीं कि अपने आप किसी को समझते ही नहीं या गरीबों के बीच में बैठकर आप उनके सुख दुःख के भागी ही नहीं बनते । ठ ठ बनने के बाद ६५ प्रतिशत लोगों में ये बातें भा जाती है, किन्तु आप उन ५ प्रतिशत लोगों में से एक है, जो फलों का भार पाकर वृक्ष के समान झुकते ही गये, और जैसे जैसे घर में लक्ष्मी बढ़ो दान और धर्म में जिनका हाथ बढ़ता ही गया। नवाब अब्दुर्रहीम स्वानखाना जब दरबार में बैठते थे, तो जो भी उनके सामने भाता था, खाली हाथ वापिस नहीं जाता था। हाथ उनके सदा ऊँचे ही रहते थे, पर क्या मजाल कि हाथ के साथ उनके नयन जरा भी ऊँचे उठ जायें। एक कविहृदय को यह बात कुछ अचरज भरी लगी, इतना बड़ा दानी, पर जरा भी गुमान नहीं। एक कागज उठाया और
सीखी कहाँ नवाब ज़, ऐसी बांकी देन ।
ज्यों ज्यों कर ऊँचे उठे, त्यो त्यों नीचे नैन । यह दोहा लिखकर उत्तर के लिए नवाब साहब के पास भिजवा दिया। नवाब सा० ने तुरन्त लिख भेजा
देनहार कोऊ और है, जो देवत दिन रैन ।
लोग भरम मो पै करें, यासें नीचे नैन । समाजभूषण जी के साथ भी यही उक्ति घटती है। लोगों ने उनके हाथ अवश्य ऊँचे स्टे देखे हैं, लेकिन नैन उनके सदा ही नीचे रहे हैं। तारण समाज के क्षेत्रों को और उसके साहित्य को प्रकाश में लाने के लिए तो आपने लाखों का दान दिया ही है और आये दिन वह दान उसे