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आत्मा के तीन रूपः उनके लक्षण और कार्य
आत्मा के तीन रूप
आत्मा त्रिविधि प्रोक्तं च, पर अंतरु वहिरपयं । परिणामं जं च तिस्टंते, तस्यास्ति गुण संजुतं ॥४७॥
श्री जैन आगम में मधुर स्वर से कहें परमात्मा । पर्यायनय की दृष्टि से, भव्यो ! त्रिविध है आत्मा || 'परमात्मा' उत्तम है, मध्यम है कि 'अन्तर आतमा' | निकृष्ट है जो आतमा, वह आत्मा ' बहिरात्मा' ||
संयोगप्रात कमों के निमित्त से आत्मा की जो भिन्न भिन्न अवस्थाएं होती हैं, उस दृष्टि से आत्मा तीन प्रकार की होती है ( १ ) परमात्मा ( २ ) अंतरात्मा ( ३ ) बहिरात्मा । ये सब अवस्थायें अपने अपने गुणों के अनुसार होती हैं ।