________________
श्री तारणस्वामी
सम्यक प्राचार
वन्दनायें
ओम् देव देवं नमस्कृतं, लोकालोकप्रकासकम् । त्रिलोकं भुवनाथ ज्योति, उर्वकारं च विन्दते ॥१॥ जिस ज्योतिर्मय का आराधन, करते त्रिभुवनपति अरहंत । लोकालोक प्रकाशित करता, जो बिखेर रवि-रश्मि अनंत ।। द्रव्य-राशि को हस्तमलकवत् , करता जो नित व्यक्त ललाम ।
उस पुनीततम महा ओम् को, करता हूँ मैं प्रथम प्रणाम ॥ जो, तीन लोक के नाथ, कर्मों के विजेता श्री अरहंत प्रभु द्वारा आराधन किये जाने योग्य है; लोक और अलोक दोनों का जो प्रकाशक है; तीनों लोक में फैली हुई द्रव्यराशि का जो समीचीन दर्शन कराता है, ऐसे उस ज्योति के पुंज महा पुनीत ओम् को मैं सर्व प्रथम प्रणाम करता हूँ।