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मुक्तिमार्ग के afte तपोपूत
मुनि या साधुओं के कर्तव्य [ ४४५ से ४६० तक ]
"मन के समस्त विरोधों का नाश करके जो निर्दुःख और निस्तृण होकर रहता है, उसे ही मैं मुनि कहता हूँ । अखिल लोक में अध्यात्म-विषयक तथा साधुओं और असाधुओं का धर्म जानकर जो आसक्ति के उस पार चला गया है, उसे मुनि कहते हैं। उसकी पूजा मनुष्य क्या देवता भी करते हैं।"
- महात्मा बुद्ध ।