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________________ २३०] सम्यक् आचार परिग्रह त्याग प्रतिमा परिग्रहं पुद्गलार्थ च, परिग्रहं नवि चिंतए । ग्रहणं दर्सनं सुद्धं, परिग्रह नवि दिस्टते ॥४३२॥ नश्वर पुद्गल हेतु परिग्रह, जो भी रक्खे जाते । संग-त्याग प्रतिमा में मानव, उन सबही को ठुकराते ॥ एकमात्र सम्यग्दर्शन को ही, वे ग्राह्य बनाते । बाह्य परिग्रह के दलदल से, वे निज नेह हटाते ॥ परिग्रह त्याग प्रतिमा में इम नश्वर शरीर के लिये जितने भी परिग्रहों का संयम किया जाता है, उन मबका त्याग कर दिया जाना है। जिससे सम्बन्ध रखा जाता है ऐसी वस्तु केवल शुद्ध सम्यक्त्व ही होनी है, जो उसकी नचं आत्मा की निधि होती है। दृसंग बाह्य परिग्रहों से इस प्रनिमा का धारी अपने मब मम्बन्ध विच्छंद कर लेता है। अनुमति त्याग प्रतिमा अनुमतं न दातव्यं, मिथ्या रागादि देसन । अहिंमा भाव सुद्धस्य, अनुमति न चिंतए ॥४३३॥ इस जग में जो रागवर्द्धिनी, चर्चाएं रहती हैं। जिनमें सांसारिक विषयों को, धाराएं बहती हैं । अनुमति-त्यागी इनमें बनते, नेक न सम्मतिदाता । शुद्ध अहिंसक भावों का ही, उनमें सर लहराता ।। अनुमतिन्याग प्रतिमा का धारी ऐसे किन्हीं विषयों पर अपनी सम्मति प्रदान नहीं करता, जिनका मंबंध मिथ्या रागादि भावों से हुआ करता है। अहिंसा या आत्मभावों से युक्त जितने विषय हुआ करते हैं इम प्रतिमा का धारी केवल उन्हीं का चितवन करता है और जग से उदासीन रहकर केवल उन्हीं में लल्लीन रहा करता है।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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