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________________ सम्यक् आचार पात्र दानं च सुद्धं च, दात्रं सुद्ध सदा भवेत् । तत्र दानं च उक्तस्य, सुद्ध दिस्टी सदा मयं ॥२८६॥ to sho sho सत्पात्रदल को दान देना, पुण्यवंध महान है । इससे हृदय दातार का होता, विमल अम्लान है। जिस भांति दर्शन, मोक्ष-सुख का मूल है, आधार है । यह पात्र-दान उसी तरह रे ! मोक्ष-सुख का द्वार है ॥ पात्रदान देना महान पुण्य बंध का कारण है। इससे दातार का हृदय सब मलों से रहित होकर शुद्ध बन जाता है और उसके लिये मोक्ष का दरवाजा खुल जाता है। जिस तरह शुद्ध सम्यग्दर्शन मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है, उसी तरह सत्पात्र दल को दान देना भी मोक्षप्राप्ति का एक अमोघ उपाय है। पात्र सिष्यां च दात्रस्य, दात्र दानं च पात्र यं । दात्र पात्रं च सुद्धं च, दानं निर्मलतं सदा ॥२८७॥ सत्पात्र को दातार देता, रे ! जहां शुभ दान है । मिलता उसे उससे वहीं, उपदेश शुद्ध महान है ॥ होता जहाँ सत्पात्र, होता जहां शुभ दातार है । यह दान हो जाता वहाँ, चिर-सौख्य-पारावार है ।। जहां दातार, सत्पात्र को किसी प्रकार का दान देता है, वहां उसे सत्पात्र से कई प्रकार की उत्तम शिक्षायें भी प्राप्त होती हैं। जिस जगह दातार और पात्र दोनों एक निर्मल स्वभाव वाले मिल जाते हैं, वहाँ दान अपूर्व शाश्वत सुख का रूप धारण कर लेता है।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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