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अटूट श्रद्धाकान
किन्तु
साधनाओं से हीन गृहस्थाश्रमी, अव्रत सम्यग्दृष्टि और उसके कर्तव्य
___[ १९५ से ३७७ तक ]
"देखो, गृहस्थ जो दूसरे लोगों को कर्तव्य-पालन में सहायता देता है और स्वयं भी धार्मिक जीवन व्यतीन करता है. वह ऋषियों से भी अधिक पवित्र है।"
-महर्षि तिरुवल्लुवर तामिल वेद, पृष्ठ १६/८