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________________ मम्यक आचार मान्यते दुस्ट मद्धावं, वचनं दुस्ट रतो सदा । चिंतनं दुस्ट आनंदं, ते पारधी हिंमा नंदितं ॥ १२० ॥ जो दुष्ट भावों को सदा, देते क्रियात्मक स्थान हैं । जिनके मुखों से. दुष्ट भावों के, निकलते बाण हैं ।। जो दुष्ट भावों का ही करते हैं, निरंतर चितवन । वे घोर हिंसानंद मय, सब पारधी हैं विज्ञजन ॥ जो दुष्ट भावों को मान्य दता है। जिसके प्रत्येक कार्य दुष्टता से पूर्ण होत है नथा जो दुष्ट भावों के चिन्तवन में विशेष आनन्द लेता है, कह हिंसा के भावों में मना हा पुरुप, पारधी कहलाता है। विम्वामं पारधी दुम्टा, मा कूड वचन कूडयं । कर्मना कूड कर्तव्य, पारधी दोष जुत्तं ॥ १२१ ।। जो दृष्ट, मन वच और क्रम से कर हैं. अति कर हैं । जो दुष्ट भावों की , विषैली, वारुणी में चूर हैं ॥ ऐसे बधिक-दल का, मुनो ! विश्वास जिनने कर लिया। उनने समझ लो पारधी-भावों से अंतर भर लिया । मन, वचन व कमों से दुष्ट पारधी, विश्वास देकर या लालच देकर, जिस तरह पशु पक्षियां को अपने जाल में फाँस लेता है, वैसे ही दुष्ट स्वभावी कुगुरु, भोले व अज्ञानी जनों को धर्म नथा म्वादिक का लोभ अथवा सांसारिक वासनाओंकी पूर्ति का लालच बनाकर, अपने माया जाल में फॉम लेता है। इसमें उसमें पूर्णपने पारधी के दोपों का समावेश हो जाता है।
SR No.010538
Book TitleSamyak Achar Samyak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Maharaj, Amrutlal
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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