________________
ज्ञानोदय ट्रस्ट के नामसे एक सार्वजनिक ट्रस्ट बना दिया है । भारतीय धर्म और संस्कृति के विषय मे अध्ययन और लेखन को प्रगति देने के लिये उस ट्रस्ट के धन का उपयोग सार्वजनिक रूप से होता है। मैने एक राजस्थानी प्राचार्य के विषय मे लिखा गया ग्रन्थ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो यह इच्छा श्रद्धेय पंडित श्री सुखलालजी के समक्ष प्रदर्शित की, तब पंडितजी ने उसे सहर्ष स्वीकार किया औरज्ञानोदय ग्रन्थमाला मे प्रकाशित न कराकर हमें वह दे दिया। एतदर्थ ग्रन्थमाला की ओर से मै उनका आभार मानता हू । यहाँ मै यह भी निर्दिष्ट कर देना चाहता हूँ कि ज्ञानोदय ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने ही गुजराती से हिन्दी मे अनुवाद के लिए खर्च किया है। एतदर्थ मैं ज्ञानोदय ट्रस्ट का भी आभार मानता हूं।
बंबई यूनिवर्सिटी द्वारा ये व्याख्यान दिये गये थे और उस यूनिवर्सिटी ने ही गुजराती मे उन्हें प्रकाशित किया है । उनका हिन्दी अनुवाद ज्ञानोदय ट्रस्ट प्रकाशित करे इसकी अनुमति यूनिवर्सिटी के अधिकारियो ने श्री पडितजी को दी थी। उन्होने उसी अनुमति के बल पर हमे इसे प्रकाशित करने की अनुज्ञा दी है । अतएव यहाँ बंबई यूनिवर्सिटी का भी आभार मानना आवश्यक है।
'प्राशा है, प्रस्तुत प्रकाशन से समस्त राजस्थान का विद्वद्वर्ग अपने एक अतीत समदर्शी विद्वान् प्राचार्य का परिचय पाकर गौरव का अनुभव करेगा और अन्य हिन्दी भाषाभाषी विशाल वाचकवर्ग भी राजस्थान के इस बहुमूल्य विद्वद्रत्न का परिचय पाकर अपने को धन्य समझेगा।
आषाढ़ी पूणिमा, स० २०२० वि०
मुनि जिनविजय
सम्मान्य सचालक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान