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समय प्राचार्य हरिभद्र जहाईती नावना बारा जीवन में समता सावने का उद्देश्य न हो तो वह ब्रह्मादेत नत्र वाद नक ही रह जाय और गेग द्वारा संक्लेश का निवारण कर के विशुद्धि द्धि करने की जो बात अव्यात्म्मास्त्रों में आती है वह तथा वन्व-मोन की व्यवस्था कनी सही नहीं सके । ऐले विचार से उन्होंने ब्रह्माहतवाद का निरसन करने पर नी उजना तात्पर्य समता की सिद्धि में सूचित करके ब्राह्मण और श्रमण परम्परा के चैत्र मुदीर्घ काल ने चले आने वाले ग्रन्तर को दूर करने का, दूसरे क्सिी की अपेक्षा विशेष वाराही, प्रगल किया है।