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समदर्गी प्राचार्य हरिभद्र इमे विक्रम की वारहवी गती के आसपास रखते हैं । इसमे आचार्य हरिभद्र के जन्मस्थान का नाम 'पिवंगुई बंभपुणी'१० ऐसा पहा जाता है, जब कि इतर ग्रन्यो में उनका जन्मस्थान चित्तौड-चित्रकूट' कहा गया है। ये दोनो निर्देश भिन्न होने पर भी वस्तुत. इसमें खास विरोध जैमा ज्ञात नही होता है । 'पिवंगुई' ऐसा मूल नाम शुद्ध रूप मे उल्लिखित हो, या फिर कुछ विकृत रूप मे प्राप्त हुआ हो यह कहना कठिन है, परन्तु, उसके साथ जो 'वंभपुणी' का उल्लेख है वह 'ब्रह्मपुरी' का ही विकृत रूप है । इस तरह यह ब्रह्मपुरी कोई छोटा देहात हो, कस्बा हो या किसी नगर-नगरी का एक भाग हो, तो भी वह चित्तौड़ के आसपास ही होगा। इसीलिए उत्तरकालीन ग्रन्यो
मे अधिक प्रख्यात चित्तौड का निर्देश तो रह गया, किन्तु ब्रह्मपुरी गौण बन गई ___ या फिर ख्याल मे ही न रही।
वित्तौडगढ की प्रतिष्टा से पहले उसमे उत्तर मे लगभग ५-६ मील की दूरी पर आई हुई शिवि जनपद की राजधानी 'मध्यमिका' नगरी विख्यात थी। यह अव भी 'नगरी' के नाम से पहचानी जाती है। यह नगरी बहुत प्राचीन है तथा सत्ता, विद्या एवं धर्मो का केन्द्र रही है ।१२ इसीलिए इस पर यदा-कदा आक्रमण होते रहे है। इसका सर्व-प्रयम उल्लेख महाभाष्यकार पतंजलि (ईसा-पूर्व दूसरी शतीने ) अपने भाष्य मे किया है ।'३ मध्यमिका वैदिक परम्परा का केन्द्र तो थी ही, परन्तु भागवत परम्परा का तो वह विशिष्ट केन्द्र घी तथा बौद्ध एवं जैन परम्परानो का ४ भी वह एक विशिष्ट क्षेत्र जैसी थी । उत्तरोत्तर अाक्रमणों के कारण जब यह स्थान
१० "पिवगुईए वभपुणीए" - पाटन, सघवी के पाडे के जन भण्डार की वि० स० १४६७ मे लिखित ताड़पत्रीय पोथी, खण्ड २, पत्र ३०० ।
११ अधोलिखित प्राचीन ग्रन्थो मे जन्मस्थान के रूप मे चित्तौड़-चित्रकूटका उल्लेख मिलता है -
(क) हरिभद्रसूरिकृत 'उपदेशपद' की श्री मुनिचन्द्रमूरिकृत टीका । (वि०स० ११७४) (ख) “गणवरसार्वशतक' की सुमतिगणिकृत वृत्ति । (वि० स० १२६५) (ग) प्रभाबन्द्रसूरिकृत 'प्रभावकचरित्र' नवम श ग । (वि० स० १३३४) (घ) राजशेखरसूरिकृत 'प्रवन्धकोप' अपर नाम 'चतुर्विंशतिप्रवन्ध'। (वि० स०
१४०५) १२ देखो 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' वर्ष ६२, अक २-३ मे प्रकाशित डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का लेख 'राजस्थान मे भागवत धर्म का प्राचीन केन्द्र' पृ० ११६-२१ ।
१३ "अरुणद् यवनो मध्यमिकाम् ।" ३ २. १११
१८ देखो 'कल्पसूत्र-स्थविरावली'; उसमे मज्जिमिश्रा शाखाका उल्लेख है। वह मव्यमिका नगरी के आधार पर उस नाम से प्रसिद्ध हुई ।