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________________ चोथं; अंग॥ समषाया ||२१ ॥ वखते जे समिति एटले स्थंडिलादिकना दोप दूर करवापूर्वक प्रवृत्ति करवी ते पांचमी समिति. आ प्रमाणे पांच समिति कहेवाय छे (७) तथा अस्तिकाय एटले प्रदेशोनी राशि (समूह), ते धर्मास्तिकायादिक पांच छे, तेमनुं लक्षण (विपय) अनुक्रमे गति, स्थिति, अवगाह, उपयोग अने स्पर्शादिक छे. (एटले के गति करवामां सहाय आपे ते धर्मास्तिकाय, स्थिर रहेवामां सहाय आपे ते अधर्मास्तिकाय, अवकाश आपे ते आकाशास्तिकाय, उपयोगवाळा होय ते जीवास्तिकाय अने । वर्ण, गंध, रस, स्पर्शवाळा होय ते पुद्गलास्तिकाय जाणवा.) ८. स्थितिनां सूत्रोने विप स्थिति( आयुष्य )नो उत्कृष्टादिक विभाग आ प्रमाणे जाणवो-साते नरकपृथ्वीमां अनुक्रमे आ प्रमाणे स्थिति (उत्कृष्ट) जाणवी-एक सागरोपम १, त्रण सागरोपम २, सात सागरोपम ३, दश सागरोपम ४, सतर सागरोपम ५, बावीश सागरोपम ६ अने सातमीमां तेत्रीश सागरोपम ७॥१॥ पहेली पृथ्वीमांजे उत्कृष्ट स्थिति कही छे ते बीजी पृथ्वीमां जघन्य स्थिति जाणवी. (एम उत्तरोत्तर जाणी लेवू). आ तरतम योग सर्वत्र जाणवो, पहेली रत्नप्रभा पृथ्वीने विप दश हजार वर्पनी जघन्य स्थिति कही छे ॥२॥" तथा--" पहेला देवलोकमां उत्कृष्ट बे सागरोपम १, बीजामां साधिक वे सागरोपम २, त्रीजामां सात सागरोपम ३, चोथामां साधिक सात सागरोपम ४, पांचमामां दश सागरोपम ५, छठामां चौद सागरोपम ६, सातमामां सतर सागरोपम ७, आ प्रमाणे सौधर्मथी सातमा शुक्र देवलोक सुधी समजवं. त्यारपछी दरेक देवलोके तथा दरेक ग्रैवेयके एक एक सागरोपमनी वृद्धि करवी. (हवे जघन्य स्थिति कहे छे) पहेले देवलोके एक पल्योपम १, बीजे देवलोके साधिक पल्योपम २, बीजे वे सागरोपम ३, चोथे साधिक वे सागरोपम न
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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