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चोथु अंग॥
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति (२). त्रण शल्य कह्या छे, ते आ प्रमाणे-मायाशल्य, निदानशल्य, मिथ्यादर्शनशल्य (३). त्रण गारव कह्या छे, ते आ प्रमाणे--ऋद्धिगारव, रसगारव, सातागारव (४). त्रण विराधना कही छे, ते आ प्रमाणेज्ञानविराधना, दर्शनविराधना, चारित्रविराधना (५). - मृगशीर्ष नक्षत्रना त्रण तारा कह्या छ (१). पुष्य नक्षत्रना त्रण तारा कह्या छे (२). ज्येष्ठा नक्षत्रना त्रण तारा कह्या
छे (३), अभिजित् नक्षत्रना त्रण तारा कह्या छ (४), श्रवण नक्षत्रना त्रण तारा कह्या छे (५). अश्विनी नक्षत्रना त्रण तारा कह्या छे (६). भरणी नक्षत्रना त्रण तारा कह्या छे (७).
आ रत्नप्रभा पृथ्वीना केटलाक नारकीओनी त्रण पल्योपमनी स्थिति कही छे (१). बीजी पृथ्वीना नारकीनी उत्कृष्ट स्थिति त्रण सागरोपमनी कही छे (२). त्रीजी पृथ्वीना नारकीनी जघन्य स्थिति त्रण सागरोपमनी कही छे (३). केटलाक असुरकुमार देवोनी त्रण पल्योपमनी स्थिति कही छे (४). असंख्य वर्षना आयुष्यवाळा संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच योनिवाळा (युगलिक)नी उत्कृष्ट स्थिति त्रण पल्योपमनी कही छे (५). असंख्य वर्पना आयुष्यवाळा संज्ञी गर्भज मनुष्यो(युगलिक)नी उत्कृष्ट स्थिति त्रण पल्योपमनी कही छे (६). सौधर्म अने ईशान देवलोकमां रहेला केटलाक देवोनी स्थिति त्रण पल्योपमनी कही छे (७). सनत्कुमार अने माहेंद्र कल्पना केटलाक देवोनी त्रण सागरोपमनी स्थिति कही छे. (८) जे देवो आभंकर, प्रभंकर, आभंकरप्रभंकर, चंद्र, चंद्रावर्त, चंद्रप्रभ, चंद्रकांत, चंद्रवर्ण, चंद्रलेश्य, चंद्रध्वज, चंद्रशृंग, चंद्रसृष्ट, चंद्रकूट अने चंद्रोत्तरावतंसक नामनाः विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति त्रण सागरोपमनी कही छे (९)..