________________
श्री समवायाङ्ग
सूत्र ॥
चो अंग
॥३११॥
जो के आ व्याख्यान ( टीका ) उत्तम कविओना वचननी परतंत्रतावडे में कयुं छे, तोपण आमां कोइ ठेकाणे मन(मति ) ना मोहने लीघे अर्थादिकनो भेद ( दोष ) संभवे छे, परंतु श्रीसंघनी बुद्धिने अनुसरवानी विधिथी अने भावनी शुद्धी मारो अल्प दोप पण न हो, आ वावतमां श्रुतदेवता मारा पर प्रसन्न मनवाळा हो ॥ ५ ॥
free farararat मनोहर चारित्रवाळा श्रीवर्धमान नामना सूरितुं ध्यान करता, अति तीव्र तप करनार अने ग्रंथनी रचना करवामां प्रभु जेवा श्रीमान् जिनेश्वरसूरि तथा तेना बंधु, दर्पवाळा वाचाळ जनोने जीतनारा अने पृथ्वी पर प्रसिद्धिने पामेला श्रीबुद्धिसागर नामना सूरि थया हता ॥ ६ ॥
तेमना शिष्य श्री अभयदेव सूरिए श्रीसमवाय नामना आ चोथा अंगनी संक्षेपथी टीका करी छे ॥ ७ ॥
आ समवायांगनी टीका विक्रम संवत अग्यार सो ने वीश ( ११२० )नी सालमां अणहिलंपादक नामना नगरमां रची छे ॥ ८ ॥
• आ टीकाना दरेक अक्षर गणीने एनुं प्रमाण त्रण हजार अने पोणा छ सो ( ३५७५) श्लोक जेटलुं निश्चय कर्यु छे ॥९॥ | सूत्र संख्या श्लोक १६६७ अने टीका ३५७५ । बन्ने मळीने ५२४२ श्लोक छे. ॥
प्रशस्ति।
॥३१९॥