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मूलार्थः-आ जंबूद्वीप नामना द्वीपमां औरवत क्षेत्रने विषे आ अवसर्पिणीमां चोवीश तीर्थकरो थयाहता, ते आप्रमाणेचंद्रानन १, सुचंद्र २, अग्निसेन ३, नंदीसेन ( कोइ ग्रंथमां आत्मसेन एव॒ नाम पण देखाय छे ) ४, ऋपिदिन्न ५, व्रतधारी ६, श्यामचंद्र ७ ने हुं वांदु छ (६६). युक्तिसेन ( कोइ ठेकाणे दीर्घबाहु के दीर्घसेन एवा पण नाम देखाय छ) ८, अजितसेन ( कोइ ठेकाणे शतायु एवं पण नाम छे) ९, शिवसेन ( कोइ ठेकाणे आ सत्यसेन अने सत्यकि पण कहेवाय छे ) १०, बुद्ध-तत्त्वने जाणनार देवशर्मा ( बीजुं नाम देवसेन ) ११, निक्षिप्तशस्त्र (वीजुं नाम श्रेयांस ) १२, तेमने हुँ सदा नमुंटुं (६७), असंज्वल १३, जिनवृपभ (बीजुं नाम स्वयंजल ) १४, अमित-केवळ ज्ञानवाळा अनंतक (बीजुं नाम सिंहसेन) १५, धूत रजवाळा-जेणे कर्मरजनो नाश कर्यो छे एवा उपशांत नामना जिनेश्वर १६, गुप्तिसेन १७, आ सर्वने हुं वांदुं छु. ( ६८.). अतिपार्थ १८, सुपार्श्व १९, देवेश्वरोए वांदेला मरुदेव २०, मोक्षने पामेला, दुःखनो क्षय करनार अने श्याम कोष्ठवाला धर नामना जिनेश्वर २१, ए सर्वने हुं वांदु छु, (६९). रागने जितनार अग्निसेन (बीजुं नाम महासेन) २२, क्षीण रागवाळा अग्निपुत्र २३, रागद्वेषनो नाश करनार अने सिद्धिमां गयेला एवा वारिपेण २४,
आ सर्वने हुं वांदु छु (७०). ( अन्य स्थाने आ नामोनी आनुपूर्वी ( अनुक्रम ) अन्यथा प्रकारे पण जोवामां आवे छे.)। ___मू०--जंबूद्दीवे णं दीवे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए भारहे वासे सत्त कुलगरा भविस्सति, | तं जहा-मियवाहणे सुभूमे य सुप्पभेय सयंपभे। दत्ते सुहुमे सुबंधू य आगमिस्साण होक्खति ॥७१॥