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बलदेव
वासुदेव
गुणवर्णन।
॥३०२॥
श्री विकसच्चित्रवरमालारचितवक्ष एवा, (अहीं सुधीना बधा विशेपणो वासुदेवना जाणवा) तथा विभक्त एटले स्पष्ट रीते छूटा छूटा समवायाङ्ग देखाताजे एक सो ने आठ चक्र विगेरे लक्षणो तेणे करीने प्रशस्त एटले मांगलिक अने सुंदर एटले मनोहर स्थापन कराया छे सूत्र ॥
मस्तक अने आंगळी विगेरे अंगोपांग जेमना ते अष्टशतविभक्तलक्षणप्रशस्तसुन्दरविरचितांगोपांग एवा, तथा मदोन्मत्त चोधुं अंग 1. श्रेष्ठ हाथीनो जे ललित-मनोहर विक्रम-संचार तेना जेवी विलासवाळी छे गति जेमनी ते मत्तगजवरेन्द्रललितविक्रमवि
लासितगति एवा, शरदऋतुने विषे थयेलो एवो अने नवं स्तनित (गर्जारव ) जे नि?पने विपे छे एवो तथा मधुर अने गंभीर एवो जे क्रौंच पक्षीनो निर्घोष एटले नाद तेनी जेवो तथा दुंदुभिना स्वर जेवो छ नाद (स्वर) जेमनो ते शारदनवस्तनितमधुरगंभीरक्रौंचनिर्घोषदुन्दुभिस्वर एवा, अहीं शरदऋतुमा क्रौंच पक्षी मत्त अने मधुर स्वरवाळा होय छे तेथी शरदनुं ग्रहण कर्यु छ, तथा वारंवार शब्दनी प्रवृत्ति थवाथी ते (शब्द)नो भंग (विच्छेद) थाय त्यारे तेनी अमनोहरता थइ जाय छे तेथी नवस्तनित शब्दनुं ग्रहण कयुं छे, अने स्वरूप देखाडवाने माटे (स्वरूप विशेषण तरीके ) मधुर अने गंभीर ए वे शब्दनुं ग्रहण कयु छे, तथा कटीसूत्र एटले आभरण विशेप ( कंदोरो), ते जेमा प्रधान छे एवा बळदेवने नीलरंगना अने वासुदेवने पीतरंगना कौशेयवस्त्रो जेमने छे ते कटीसूत्रनीलपीतकौशेयवास एवा, श्रेष्ठ प्रभाव अने श्रेष्ठ कांतिपणाए करीने श्रेष्ठ अने देदीप्यमान तेजवाळा, विक्रमना योगथी नरसिंह (नरने विपे सिंह जेवा), मनुष्योना नायक होवाथी नरपति, परम ऐश्वर्यनो योग होवाथी नरेंद्र, उठावेला कार्यना भारनो निर्वाह करनार होवाथी नरने विपे वृषभ समान, मरुवृषभ जेवा एटले देवराज( इंद्र )नी उपमावाळा, राजतेजनी लक्ष्मीए करीने बीजा राजाओथी अत्यंत देदी
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