________________
समवायाम
दीक्षा . शिविका नाम ॥
पो' अंग ॥२९॥
आतपना अभावरूप प्रभावडे युक्त होय छे, अहीं युक्त ए शब्द अध्याहार छे.) (१८) आ शिविकाओ प्रथम मनुष्यो हर्पना रोमकूप सहित उपाडे छे-वहन करे छे अने पछी असुरेंद्रो, सुरेंद्रो अने नागेंद्रो वहन करे छे. (टीकार्थ-सा हहरोमकूवेहिं ति'-जेना उपर जिनेश्वर आरूढ थया होय ते शिविका हृष्टरोमकूप एटले, जेमना रुंवाडा ऊभा थया छे एवा मनुष्यो वहन करे छे) (१९). ते असुरेंद्रादिक चपळ एवा सता चपळ कुंडलने धारण करनारा अने पोतानी इच्छाथी विकुर्वेला मुकुटादिक आभरणोने धारण करनारा होय छे. तेओ सुरासुरे वांदेला एवा जिनेश्वरोनी शिविका वहन करे छे (२०) तेमा आगळ देवो वहन करे छे, नागकुमारो जमणी बाजु वहन करे छे, असुरेंद्रादिक पाछळथी वहन करे छे अने उत्तर बाजुए गरुड-गरुडध्वज एटले सुपर्णकुमार वहन करे' छे. (२१). ऋषभदेव भगवाने विनीता नगरीमाथी निष्क्रमण कयु, अरिष्टनेमिए द्वारका नगरीमाथी अने बाकीना बावीश तीर्थंकरोए पोतपोतानी जन्मभूमिमांथी निष्क्रमण कयु (दीक्षा लेवा नीकळ्या) (२२). सर्वे चोवीशे तीर्थंकरो इंद्रे आपेला एक देवदूष्यवडे नीकळ्या हता, (पण उपधिरूप वस्त्रवडे नहीं ). अन्यलिंगे नहीं (एटले स्थविरकल्पिकादिकना लिंगवडे नीकळ्या नहोता पण तीर्थकरलिंगे ज नीकळ्या हता), तथा गृहस्थलिंगे पण नहीं, तेम ज कुलिंगे एटले शाक्यादिकलिंगे पण नहीं. (२३) भगवान महावीरस्वामीए एकलाए ज दीक्षा ग्रहण करी हती, पार्श्वनाथे अने मल्लिनाथे त्रण सो त्रण सो पुरुषोनी साथे दीक्षा लीधी हती, भगवान वासुपूज्यस्वामी छसो पुरुषोनी साथे नीकळ्या हता-दीक्षा लीधी हती, (२४), उग्रकुळना, भोगकुळना
१. सुबोधिकामां उपाडनार इंद्रोना नामोमां फेरफार छे.
ला॥२९॥