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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥ चोयुं अंग दीक्षाशिविका नाम ॥ ॥२९२॥ मेण असुरा गरुला पुण उत्तरे पासे ॥ २१॥ उसभो अ विणीयाए बारवईए अरिट्ठवरणेमी । अवसेसा तित्थयरा निक्खंता जम्मभूमीसु॥२२॥ सव्वे वि एगदूसेण [णिगया जिणवरा चउव्वीसं । ण य णाम अण्णलिंगे ण य गिहिलिंगे कुलिंगे य ॥ २३ ॥] एको भगवं वीरो [ पासो मल्ली य तिहि तिहि सएहिं । भगवं पि वासुपुज्जो छहिं पुरिससरहिं निक्खंतो ॥२४॥] उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं [ च खत्तियाणं च। चउहि सहस्सेहिं उसभो सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥२५॥ ] सुमइ स्थ णिच्चभत्तेण[णिग्गओ वासुपुज चोत्थेणं । पासो मल्ली य अट्ठमेण सेसा उछट्टेण।। २६ ॥] | मूलार्थ:-जंबुद्वीप नामना द्वीपने विपे भरतक्षेत्रमा आ अवसर्पिणीमां चोवीश तीर्थंकरो थया, ते आ प्रमाणे| ऋषभदेव १, अजितनाथ २, संभव ३, अभिनंदन ४, सुमति ५, पद्मप्रभ ६, सुपार्श्व ७, चंद्रप्रभ ८, सुविधि अथवा पुष्पदंत ९, शीतल १०, श्रेयांस ११, वासुपूज्य १२, विमल १३, अनंत १४, धर्म १५, शांति १६, कुंथु १७, अर १८, मल्लि १९, मुनिसुव्रत २०, नमि २१, नेमि २२, पार्श्व २३ अने वर्धमान २४. आ चोवीश तीर्थंकरोना चोवीश पूर्वभवना नाम हता, ते आ प्रमाणेला १. पूर्वना त्रीजा जे मनुष्यभवमा तीर्थकरनाम निकाचित कयु ते भवनां आ नामो जाणवा. amansamanuman ॥२९२॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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