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समवायाङ्ग
सूत्र ॥
अंग
॥२८८॥
स्कंधवाळी ते पीडा तेमने घटी शके छे, तेथी करीने ज कहे छे के' जे पोग्गला' इत्यादि, जे पुद्गलो अनिष्ट एटले सदा तेओने सामान्यवडे अवल्लभ छे, तथा अकांत एटले सदा तेपणुं ( अवल्लभपणुं ) होवाथी अकमनीय छे, तथा अप्रिय एटले सर्वेने द्वेष करवा लायक छै, तथा अशुभ एटले स्वभावथी ज असुंदर छे, तथां अमनोज्ञ एटले कथा करवाथी पण मनने न गमे तेवा छे, तथा अमनआपा एटले चितवन करतां पण मनने अप्रिय लागे तेवा छे. ते आवा प्रका रना पुद्गलो ते नारकी जीवोने असंहननपणाए करीने एटले अस्थिसंचयनी रचना रहित शरीरपणाए करीने परिणमे छे. इति ॥
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कवि णं भंते! संठाणे ' इत्यादि. तेमां मान, उन्मान अने प्रमाणनी न्यूनता के अधिकता रहित अंगोपांग जे शरीरसंस्थानमां होय ते समचतुरस्र संस्थान कहेवाय छे १, तथा जेमां नाभिनी उपरना सर्व अवयवो चतुरस्र एटले • कहेला लक्षणना विसंवाद रहित ( यथोक्त लक्षणवाळा ) होय अने नीचेना अवयवो तेवा न होय ते न्यग्रोध संस्थान कहेवाय छे २, तथा जेमां नाभिनी नीचे सर्व अवयवो चतुरस्र एटले लक्षणना विसंवाद रहित ( यथोक्त लक्षणवाळा ) होय अने उपरना अवयवो तेवा स्वरूपवाळा न होय ते सादि संस्थान कहेवाय छे ३, तथा जेमां ग्रीवा अने हाथ- पग समचतुरस्र - यथोक्त लक्षणवाळा तथा बच्चे संक्षिप्त अने विकारवाळो कोठो होय ते कुब्ज संस्थान कहेवाय छे ४, तथा मां कोठो यथोक्त लक्षणवाळो होय तथा ग्रीवादि अवयव अने हाथ-पग चतुरस्रना लक्षण रहित होय ते वामन संस्थान कहेवाय छे ५, तथा जेमां हाथ-पग विगेरे सर्व अवयवो बहुप्राय (लांबा - हुंका) अने प्रमाणवाळा न होय ते हुंड संस्थान कहेवाय छे. ६ ॥ सूत्र- १५५ ।।
संघयण संस्थान विचार ॥
॥२८८॥