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________________ जा तथा नीचेना भागमां पुष्करकार्णिकाना संस्थाने रहेला छे एटले पुष्करकर्णिका-कमळनो मध्यभाग, ते ऊंचा अने सरखा चित्रना बिंदुवाळो होय छे, तथा 'उत्कीर्णान्तरविपुलगम्भीरखातपरिखेति'-उत्कीर्ण एटले पृथ्वीने खोदीने | पाळरूप कर्यु छे आंतरं जे बेनुं ते उत्कीर्णांतर कहीए, एवा विपुल अने गंभीर छे खात अने परिखा जेमना एवा भवनो छे, अहीं जे उपर अने नीचे सरखं होय ते खात कहेवाय छे, अने जे उपर विशाळ होय अने नीचे सांकडी होय ते परिखा कहेवाय छे. ते बन्नेनी बच्चे पाळ बांधेली छे एवा, तथा अट्टालक एटले प्राकारनी उपर रहेला आश्रयविशेष (कोठा), | चरिका एटले नगर अने प्राकारनी वच्चे आठ हाथनो पहोळो मार्ग, पाठांतरे चतुरक एटले गाममां प्रसिद्ध एवा सभाविशेष जाणवा, 'दारगोउर त्ति'-गोपुर( दरवाजा )ना द्वार अर्थात नगरनी प्रतोलीओ (दरवाजा), कपाट (कमाड) ए प्रसिद्ध छे, तोरण पण प्रसिद्ध छे, प्रतिद्वार एटले अवांतर (वचेना) द्वार, त्यारपछी अट्टालक विगेरे सर्व शब्दोनो द्वंद्व समास करवो. आ सर्व जेना देश(प्रदेश )रूप भागने विषे छे एवा विमानो छे. अहीं देश अने भाग ए बन्ने शब्दना घणा अर्थ थाय छे, तेथी आ बन्नेनो परस्पर विशेषण विशेष्यभाव जाणवो. तथा जंत एटले पथ्थर फेंकवाना यंत्र (गोफण) मुशळ( सांवेला )नो अर्थ प्रसिद्ध छे, मुसुंढी नामनुं शस्त्र, शतघ्नी एटले सेंकडोनो घात करनार मोटा काष्ठ अने शिलाना थांभला, आटलाए करीने सहित, तथा किल्ला होवाने लीधे परसैन्योए युद्ध न करी शकाय ते अयोध्य कहेवाय छे अथवा जेना प्रत्ये योधाओ एटले परसैन्यना सुभटो नथी ते अयोध कहेवाय छे. तथा' अडयालको[ग]रइया'-अडताळीश प्रकारना विचित्र छंद अने गोपुरवडे रचेला, अहीं अन्य आचार्यों कहे छे के ' अडयाल' शब्द प्रशंसा अर्थने कहेनारो - - राज
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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