________________
समवाया सूत्र ॥
राशि विचार॥
चोधु अंग
॥२६॥
K
80
नमा सातमी पृथ्वीना नारकीना अनुत्तर अने महा मोटा पांच नरकावासा कह्या छे. तेना नाम आ प्रमाणे-काळ, महा- काळ, रोरुक, महारोरुक अने अप्रतिष्ठान नामनो पांचमो एम पांच छे. ते नरको वृत्त अने व्यस्र (वच्चेनो वर्तुल अने चार बाजुना चार त्रण खुणीया ) छे. नीचे क्षुरप्र(सजाया)ना संस्थाने रहेला छे, यावत् ते नरको अशुभ छे अने ते नरकोने विषे अशुभ वेदनाओ छे. ॥ सूत्र-१४९ ॥ . टीकार्थ:-अहीं प्रज्ञापना सूत्रनुं पहेलु पद प्रज्ञापना नामर्नु छे ते सर्व अक्षरे अक्षर कहेवु. क्यां सुधी कहेवू ? ते कहे छ-'जाव से किं तं' इत्यादि सूत्र पर्यंत कहे. केवळ आमां अने प्रज्ञापना सूत्रमा आटलो विशेष छे-अहीं 'दुवे। रासी पन्नत्ता' एवं अभिलापसूत्र छे (सूत्रनो आलावो छे), अने त्यां (प्रज्ञापना सूत्रमा) "दुविहा पण्णवणा पन्नत्ताजीवपण्णवणा अजीवपण्णवणा यत्ति" एवं सूत्र छे. सूत्रमा अतिदेश (भळामण) करेला प्रज्ञापनानुं आ पद लखी शकाय तेम नहीं होवाथी अर्थथकी तेनो लेशमात्र देखाडे छे-तेमां अजीवराशि वे प्रकारनो छे-रूपी अने अरूपी. तेमां अरूपी अजीवराशि दश प्रकारे छे-धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय देश, धर्मास्तिकाय प्रदेश, एज प्रमाणे अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्तिकाय पण त्रण त्रण प्रकारे कहेवाथी कुल नव थया, तथा दशमो अद्धा समय जाणवो इति । रूपी अजीवराशि चार प्रकारे छे-स्कंध, देश, प्रदेश अने परमाणु. ते दरेक वर्ण, गंध, रस, स्पर्श अने संस्थानना भेदथी पांच पांच प्रकारना छे, (ते दरेकना बवे त्रण त्रण विगेरेना) संयोगथी अनेक प्रकार थाय छे इति । - जीवराशि वे प्रकारनो छ-संसारसमापन्न अने असंसारसमापन्न, तेमां असंसारसमापन्न जीवो वे प्रकारना छे-अनंतरसिद्ध
॥२६॥