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वे राशि विचार॥
तिक देवो कया छे त्यांसुधी टीकामांथी कहेवू.) ते अनुत्तरोपपातिक कया (केटला प्रकारे) छ ? अनुत्तरोपपातिक पांच समवायाङ्ग प्रकारे कह्या छे. ते आ प्रमाणे-विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित अने सर्वार्थसिद्धिक. ते आ अनुत्तरोपपातिक कह्या. ते
सूत्र॥ आ संसारने पामेला ( संसारी) पंचेंद्रिय जीवराशि कही. । तेमां नारको वे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-पर्याप्ता अने बो' अंग
अपर्याप्ता. ए ज प्रमाणे दंडक कहेवो (ते दंडकनुं वर्णन करवू) यावत् वैमानिक आवे त्यांसुधी । आ रत्नप्रभा पृथ्वीने
विषे केटला क्षेत्रने अवगाहीने एटले जइने-ओळंगीने केटला नरकावासा कह्या छ ? हे गौतम ! आ रत्नप्रभा पृथ्वीनो पिंड ॥२५९॥
एक लाख ने एंशी हजार योजन प्रमाण छे, तेमां उपरथी एक हजार योजन अवगाहीने तथा नीचेना एक हजार योजन वर्जीने मध्यमां एक लाख ने अहोतेर हजार योजन रह्या, ते ठेकाणे रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे नारकीना त्रीश लाख नरकावासा छे एम में कां छे । ते नरकावासा अंदरना भागमा वर्तुल (गोळ ) अने बहारना भागमा चतुरस्र ( चोखंडा) छे, यावत्
ते नरको अशुभ छे अने ते नरकोमा अशुभ वेदनाओ छे. ए ज प्रमाणे साते नरक संबंधी ज्या जेवू घटे तेवू कहेवु. (अहीं all सात गाथाओ छे तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे)-पहेली पृथ्वीनुं बाहल्य एक लाख एंशी हजार योजन- छे, चीजीजें एक लाख
बत्रीश हजार योजन, त्रीजीनु एक लाख अठ्ठावीश हजार योजन, चोथीनुं एक लाख वीश हजार योजन, पांचमीचें एक लाख अढार हजार योजन, छठीनुं एक लाख सोळ हजार योजन अने सातमी पृथ्वीनुं बाहल्य एक लाख ने आठ हजार योजन प्रमाण छे (१)। तथा पहेली पृथ्वीमां त्रीश लाख नरकावासा छे, बीजीमां पचीश लाख, त्रीजीमां पंदर लाख, चोथीमा दश लाख, पांचमीमांत्रण लाख, छठीमां पांच ओछा एक लाख अने सातमी पृथ्वीमा मात्र पांच ज अनुत्तर
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