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समवायाङ्ग।
सूत्र॥
चोघं अंग
॥२५५॥
संसारकंतारं अणुपरियटिंसु, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए । दृष्टिवाद विराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले परिचण। अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियहिस्संति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीतकाले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं वीईवइंसु, एवं पडुप्पण्णेऽवि, एवं अणागएऽवि । दुवालसंगे णं गणिपिडगे ण कयावि णत्थि, ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भविस्सइ, भुविं च भवति य भविस्सति य (अयले) धुवे णितिए सासए अक्खए अबए अवट्ठिए णिच्चे, से जहा णामए पंच अस्थिकाया ण कयाइ ण आसि, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्सति, भुविं च भवति य भविस्सति य, ( अयला ) धुवा णितिया सासया अक्खया अवया अवट्ठिया णिच्चा, एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयाइ ण आसि, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ, भुविं च भवति य भविस्सइय, (अयले) धुवे जाव अवट्ठिए णिच्चे। एत्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे अणंताभावा अणंता अभावा अणंता हेऊ अणंता अहेऊ अणंता कारणा
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