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प्रमाणे कहेला भगवानना भवने ग्रहण कर्या विना बीजो कोइ छठो भव सांभळवामां नथी. तेथी आर्नु ज छठा भवपणे व्याख्यान कर्य छे. जे भवथी आ (भगवाननो) भव छठो होय, ते पण आनाथी छठोज होय छे. तेथी तीर्थकरना भवग्रहणथकी छठा पोटिल भवग्रहणने विषे एम जे कयुं ते ठीक ज कयुं छे (१)। १००००००० ॥ सूत्र-१३४ ॥ __ हवे सागरोपम कोटाकोटिमुं स्थान कहे छ
मू०--उसभसिरिस्स भगवओ चरिमस्स य महावीरवद्धमाणस्स एगा सागरोवमकोडाकोडी अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । १॥ १०००००००००००००० ॥ सूत्रम्--१३५॥ ___मूलार्थ:-श्रीऋषभदेव भगवानना निर्वाणथी छेल्ला श्रीमहावीर-वर्धमानस्वामीना निर्वाण सुधी एक कोटाकोटि सागरोपमर्नु अबाधाए आंतरूं का छे (१)॥१००००००००००००००॥
टीकार्थः- उसभेत्यादि, ' उसभसिरिस्स त्ति'-(ऋषभश्री) आ ठेकांणे श्रीऋषभ एम कहेवू जोइए, छतां. प्राकृतने लीधे विपरीतपणे निर्देश कर्यो छे. अहीं कांइक अधिक बताळीश हजार वर्ष एक कोटाकोटि सागरोपममां न तो पण ते अल्प होवाथी ते विशेषतुं विशेषण आप्यु नथी (१)। १००००००००००००००। सूत्र-१३५॥ ... | अहीं जे आ हमणां (उपर ) संख्याना अनुक्रमना संबंध मात्रवडे संबंधवाळा विविध प्रकारना वस्तुविशेषो कह्या, ते
१ काइक अधिक बेंताळीश हजार वर्ष कहेवार्नु कारण समजा नथी.
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