SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवाय ७००॥ (५)॥ ६००॥ सूत्र-१०९ ॥ समवायाङ्ग हवे सात सोमुं स्थान कहे छ सत्र॥ . 'मू-बंभलंतएसु कप्पेसु विमाणा सत्त सत्त जोयणसयाइं उद्रे उच्चत्तेणं पन्नत्ता ।। समचो\ अंग / णस्स णं भगवओ महावीरस्स सत्त जिणसंया होत्था ।२। समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त ॥२०१॥ वेउव्वियसया होत्था ॥३॥ अरिटुनेमीणं अरहा सत्त वाससयाई देसूणाई केवलपरियागं पाउणित्ता । सिद्ध बुद्धे जाव प्पहीणे ।४। महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरमंताओ महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स समधरणितले एस णं सत्त जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते ।५। एवं रुप्पिकूडस्स वि।६॥ ७०० ॥ सूत्रम्-११०॥ मूलार्थ:--ब्रह्म अने लांतक कल्पने विपे रहेला विमानो सात सो सात सो योजन ऊंचा छे (१)। श्रमण भगवान महावीरस्वामीने सात सो जिन (केवळी) हता (२)। श्रमण भगवान महावीर स्वामीने सात सो चैक्रियलब्धिवाळा हता (३) । अरिष्टनेमि अरिहंत कांइक ओछा सात सो वर्ष केवळीपर्यायने पाळीने सिद्ध थया, बुद्ध थया, यावत् सर्व दुःख रहित थया (४) । महाहिमवान कूटना उपरना छेडाथी महाहिमवान वर्षधर पर्वतना समभूमितळ सुधी सात सो योजननु अवाधाए आंतरं कर्तुं छे (५) ए ज प्रमाणे रुपी कूटनुं पण जाणवू (६) ॥ ७००॥ ॥२०॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy