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________________ समवाय समवायाज - चोधु अंग तेमां सातिरेकपणु आ प्रमाणे जाणवू-"त्रण सो ने तेत्रीश धनुप अने उपर एक धनुपनो बीजो भाग (३२ अंगुळ) थाय छे एम जाणवु. आ सिद्धोनी उत्कृष्ट अवगाहना कही छ (५)॥३०० । सूत्र-१०४ ॥ हवे साडा त्रण सोमुं स्थान कहे छे___ मूल--पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अध्धुट्ठसयाइं चोदसपुवीणं संपया होत्था ।१।। अभिनंदणे णं अरहा अध्धदाइंधणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं होत्था। २।३५० ॥ सूत्रम्-१०५॥ मूलार्थ:-पुरुषादानीय श्रीपार्श्वनाथ अरिहंतने साडा त्रण सो चौदपूर्वीनी संपदा हती (१)। श्रीअभिनंदनस्वामी अरिहंत साडा त्रण सो धनुप ऊंचा हता (२) ॥ ३५० ॥ सूत्र-१०५॥ हवे चार सोमुं स्थान कहे छे___मू०--संभवे णं अरहा चत्तारि धणुसयाइं उडु उच्चत्तेणं होत्था।१। सव्वे विणं णिसढनीलवंता वासहरपव्वया चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणं पन्नत्ता । २। सव्वे वि णं वक्खारपव्वया णिसढनीलवंतवासहरपव्वयए णं चत्तारि चत्तारि जोयणसयाइं उद्धं उच्चत्तेणं चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणं पन्नत्ते । ३ । आणयपाण ॥१९८॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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