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________________ का समवाय २५०॥ समवायाङ्ग सूत्र ॥ पो अंग ११९७॥ प्पीवासहरपव्वया दो दो जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं पन्नत्ता, दो दो गाउयसयाई उव्वेहेणं पन्नत्ता ।२जंबुद्दीवे णं दीवे दो कंचणपव्वयसया पन्नत्ता । ३॥ २००॥ सूत्रम्-१०२ ॥ मूलार्थः-श्री सुपार्श्वस्वामी अरिहंत ब सो धनुप ऊंचा हता (१)। सर्वे महाहिमवंत अने रूपी नामना वर्षधर पर्वतो वसो बसो योजन ऊंचा कह्या छे, अने बसो बसो गाउ उद्वेध (पृथ्वीमां ऊंडा) कह्या छे (२)। जंबुद्वीप नामना द्वीपने विषे बसो कंचनगिरिओ कह्या छे (३) ॥ २००॥ सूत्र-१०२॥ हवे अढीसोमुं स्थानक कहे छे मू-पउमप्पभे णं अरहा अड्डाइज्जाइं धणुसयाइं उद्धं उच्चत्तेणं होत्था। १ । असुरकुमाराणं | देवाणं पासायवडिंसगा अड्डाइजाइं जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं पन्नत्ता । २॥२५०॥ सूत्रम्-१०३॥ -- मूलार्थः-पद्मप्रभ अरिहंत अढीसो धनुष ऊंचा हता (१) । असुरकुमार देवोना प्रासादावतंसक (श्रेष्ठ प्रासादो) अढीसो योजन ऊंचा कह्या छे (२) ॥ २५० ॥ टीकार्थः-विशेष ए के-'पासायवडिंसय त्ति'-अवतंसक एटले मुगट अथवा कर्णपूर. (कानना अलंकार), ते अवतंसकनी जेवा अवतंसक एटले प्रधान (श्रेष्ठ ), प्रासादरूप अवतंसक अथवा प्रासादने मध्ये जे अवतंसक ते प्रासादावतंसक कहेवाय छे ( कर्मधारय अथवा पष्ठी तत्पुरुष समास) (२).॥२५०॥ सूत्र-१०३ ॥ ॥१९७॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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